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________________ ॥२०॥ आसण्णसिद्धिलाभो कोइ इमो जस्स एरिसी भत्ती। एयम्मि ता समग्गो दिजउ एसो नमोकारो ॥२१॥ जिणपडिमापञ्चक्खं सुमुहत्ते दिन्नओ तओं भणिओ। जह सोम! सुद्धसमाए समयं परिभावणिजोत्ति ॥२२।। अह अन्नया पवते वासारत्ते गहित्तु महिसीओ। पत्तो नईसमीवे पारद्धा चारित्रं ताओ ॥२३।। परतीरगयाओ खेत्तियस्स ॥५१॥ | अन्नस्स खेत्तभूमीओ। लग्गा चरिउं अइवरिसणेण जाया नई सुभरा ॥२४।। सामिउवालंभभया तासि महिसीण रक्खणनिमित्तं । दिन्ना नईए झंपा भिन्नो उयरम्मि कीलेण ।।२५॥ इह लोए आरोग्गं अभिरुइयनिष्फत्ती अत्थकामाण । सिद्धीय, सग्गसुकुले पञ्चायाई य परलोए ॥२६।। जस्सेरिसा गुणा वित्थरंति तं भावओ अणुसरंतो। पंचनमोकारमईवगायराकालमणुपत्तो ॥२७॥ तस्सेव सेट्ठिणो भारियाए गब्भम्मि अब्भुयब्भूओ। उववन्नो सो जलनिहिमुत्तिपुडे मोत्तियमणिन्व ॥२८॥ तस्माणुभावओ किंचिदंगमणघत्तणं पवजेइ । वयणांभोरुहयं पंडुरं च जायं गई मंदा ॥२९।। जा आसि सहावाओ गब्भभरेणं च सा दढं जाया। नीलमुहं परिपंडुरछायं ससिमंडलविडंबि ॥३०॥ बच्छोरहाण जुयलं छप्पयपरिभुञ्जमाणसुहदेसं । कमलजुयलं व राइयअञ्चग्गललग्गसोहग्गं ॥३१॥ जंघाओ सहीओ इव R संभूयाओ पभूयरूवाओ। अलसत्तं मित्तंपिव तीए सयासं न उज्झेइ ।।३२॥ उदरेण समं वुद्धि पत्ता लज्जा अहुजमो णट्ठो। उदरवलीहिं सह तह नयणजुयं पंडुरं जायं ॥३३॥ परिपोढपुन्नगब्भाणुभावओ तीए कमलवयणाए। संपुन्नो इयरूवो तइए मासम्मि दोहलओ ||३४॥ जह जिणहरेस पूया होइ पभूया दया य जीवेसु । सुहिओ सम्वोवि जणो जइ ता मइ मो वियंभिजा ॥३५।। तम्मि असंपज्जंते ओलग्गमुही सुपंडुरसरीरा । खीरकवोला वित्थारनयणिया झत्ति ॥५१॥
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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