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________________ ।।३२९॥ माणसब्विदियत्थवग्गोऽवि । न लहामि तं सरंतो इहं रइं कत्थइ पयत्थे ॥२२॥ विट्ठाकोटगकिमिओ कहिंचि लद्ध नरत्तणं रम्मं । पुणरवि तट्ठाणगओ जहाहियं दुक्खमणुहवई ॥२३।। तह सुरलोगाओ अहं इहागओ सुमरिऊण तच्चरियं । अच्चंतुव्विग्गमणो न निव्वुई किंचिवि लहामि ॥२४॥ ता मे कुणसु पसायं पबज्जादाणओ तयणु चेव। नियहत्थाओ अणसणदाणेण तओ गुरु भणइ ॥२५॥ पुच्छामि सत्थवाहिं . भई तह परियणं कलत्ताई। अञ्चंतमुस्सुओऽह न सहामि विलंबिउं किंचि ॥२६।। कालाणुवत्तणाओ तह सुत्तप्परिणईपमाणाओ । मा होउ सयं पडिवन्नसाहुनेवत्थओ एस ॥२७॥ तक्खणमेव विदिन्ना दिक्खा तह अणसणं निरागारं । सुद्धोवओगगुरुणा सयमेव सुहत्थिणा गुरुणा ॥२८॥ कंथारतरुकुडंगे तव्वेलं चिय गमो कओ तेणं । इंगियदेसनिविट्टो दिट्टो तग्गयसियालीए ॥२९॥ नियपेल्लएहि सजोसंजाएहिं समन्नियाएँ तओ । अहियं छुहाकिलंता लग्गा सा एगजाणुम्मि । ३०।। बीयम्मि पेल्लगाई पहरम्मि दुइज्जगम्मि रयणीए। तइयम्मि दोसु ऊरुसु चउत्थए उदरदेसम्मि ॥३१॥ स महप्पा मेरुगिरिव्व निचलो नियसमाहिलाभम्मि । | एत्तो चिय नियदेहा अप्पाणं भिन्नमिच्छंतो ॥३२॥ इहलोगे परलोगे अप्पडिबद्धो वयाओ एयाओ। जे होइ तं सयं चिय सग्गा मोक्खा व फलमत्थु ।।३३।। उदरप्पएसभक्खणसमए मरिउ स लिणिगुम्मम्मि । देवत्तणमणुपत्तो तत्थ विभूई पभूई च ॥३४।। दुक्करविणिग्गहाओ णलिणीगुम्माभिलासलेसाओ । भूरिकयमोक्खकंखापक्खोवि तहिं स संजाओ ॥३५।। जइ पुण तदेगचित्तो सो होज मओ कहं महरिसित्ति । पढिओ घडेज सत्यंतरेसु वुत्तं जओ एवं ॥३६॥ दुक्करमुद्धोसकरं अवंतिसुकुमालमहरिसीचरियं । कप्पावि नाम तह तज्जइत्ति अच्छेरयं एयं ।।३७।। अञ्चतुवगारकरं सरीरमेयंति ।।३२९॥
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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