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| वुत्तंतं तस्स समणसीहस्स । अइवित्थरेण कहिउं समए नियवसहिमणुपत्तो ॥१२६॥ तत्तो बीयम्मि दिणे सवा वसुभूइणा निओ लोओ । पन्नविओ जह भत्तं पाणं च अणायरपरेहिं ॥१२॥ ववहरणिज्जं देज अणिच्छमाणस्स अन्नमन्नस्स । जइया स गुरूण गुरू एजा भिक्खाकए कहवि ।।१२८।। पत्तम्मि तम्मंदिरम्मि तं तह विहेउमारद्धा । परिचितियं न एसो सब्भावोऽलद्धभत्तो सो ॥१२०।। वसहिं तेण नियत्तो संज्झासमए सुहत्थिणो कहियं । अज्जो ! | अणेसणा कीस अन्ज मज्झं तए विहिया ? ||१३०।। कहमेयं संभंतो पुच्छइ संसाहियं जहा तुमए । अब्भुट्ठाणं जं | मे विहियं कहिओ य वुत्तंतो ॥१३१॥ तत्तो कुसुमपुराओ उज्जेणीए पुरी' संपत्तो । जीयंतसामिणीए पडिमाए | वंदणनिमित्तं ॥१३२।। सिरिमं महागिरी परिमिमेहि समणेहि समणुगम्मं तो । अभिवंदियजिणबिंबो संबोहियसाहुसंघाओ ॥१३३।। तत्तो दसण्णदेसे नगरं नामेण एलगच्छति । तत्थ गओ स महप्पा अणसणविहिणा मरणहेउं ॥१३४॥ तं आसि दसन्नपुरं पुरा जहा एलगच्छमुप्पन्नं । तह संपइ भन्नइ मिच्छदिट्टिणा साविया एगा ॥१३५।। दुट्ठाभिसंधिणा कहवि तत्थ केणावि कुलपसूएण । परिणीया जिणधम्म विमलं सम्मं च सा कुणइ ॥१३६।। सूरत्थमणम्मि सया पच्चक्खाणं पवजमाणिं तं । भत्ता उवहसइ जहा कि कोइ निसाएँ भुजेइ? ||१३७।। पच्चक्खाणपरा जं तमेवमप्पाणयं किलिस्सेसि । न हु निप्फलकज्जारंभभाइणो होति बुद्धिधणा ॥१३८।। अह अन्नया पलत्तं तेण जहा होइ जई इहं धम्मो । ता मज्झवि पच्चक्खाणमत्थु एयाएँ रयणीए ॥१३९॥ भणिओ सो तीए सावियाए मा गिण्ह भंजसि तुमंति । मुद्धे ! किं रयणीए भुंजतोऽहं तए दिट्ठो? ॥१४०॥ तो पवयणदेवीए अमरिसमाणाइ तस्स
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