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________________ श्रीउपदे शपदे ||३१६॥ गुरुचलणे ॥८१॥ दीणाणाहाइजणाण देइ दाणं कुणेइ जीवदयं । हिमगिरिसिहरुत्तुंगे कारवइ जिणालए रम्मे ॥८२॥ Kआर्यमहा *गिरि-आपञ्चंतियरायाणो सम्वे सद्दाविऊणमह कहिओ। तेणमिमेसि धम्मो केई पत्ता व सम्मत्तं ॥८३।। समणाण सुविहियाण AL सूर्यसुहस्तिअरहंताणं च विहियबहुमाणा । ते जाया मायारहियमाणसा परियणसमेया ॥८४॥ नि. ___ अह अन्नया जिणहरे महामहो वरविभूइजोगेण । पारद्धो रन्ना धन्नपुण्णजणपेच्छणिज्जो जो ॥८५।। नियसिहरुलिहियनहो रहो समूसियमहल्लझमालो। जत्तानिमित्तमखिलम्मि पुरवरे भमिउमारतो ।।८६।। भेरीभंकाररवापूरियनहमंडलो रवमयं व । कुणमाणो जियलोयं तिरोहियाऽसेस लोयरवो ।।८७।। अग्घे दूरमहग्घे पइगेहमणेगहा पडिच्छंतो। पत्तो कमेण नरवइगिहंगणे आयरपरेणं ।।८८।। अञ्चत्तमपूयापुव्वमेव इमिणा पडिच्छिओ लग्गा । अणुमग्गेणं भमिउं नियपरियणपरिगओ राया ।।८९।। समए सम्माणित्ता सामंता पणयगम्भवयणेहिं । भणिया मनह जइ मं सामंता! निययरज्जेसुं ।।९०। कारावेह जिणहरे जिणरहजत्ताउ तहा महंतीउ । अत्थेण मे न कजं एवं खु मम पियं णवरं ||३१६॥ ॥९१।। वीसज्जिया य तेणं गमणं घोसावणं सरजेसुं । साहूण सहविहारा जा पञ्चंतिया देसा ॥९२॥ रहजत्तासणुजति (ण्हाणजत्ता) पुप्फारुहणाई उकिरणगाई । पूई च चेइयाई तेवि सरज्जेसु कारेंति ।।९३॥ अह कइयाइ सुहत्थी संपइरना नमंतसीसेण । पुट्रो भयवमणारियदेसेसु न साहुणो कीस ? ॥९४।। विहरंति तुम्ह मुणिपुंगवेण पण्णत्तमजदेसेसु । साहू जं विहरंता लहंति गुणमाह जं वीरो ॥९५॥ एत्थ किल सन्निसावय जाणंति अभिग्गहे सुविहियाणं । आरियदेसम्मि गुणा णाणचरण गच्छवुड्डी य ॥९६।। लद्धाभिप्पाएणं XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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