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श्रीउपदे- शपदे
सुमतिह०
॥२७०
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पेच्छइ समत्थमवि संतं । लच्छीसंतमसगया तह रायाणो वियाणाहि ॥५।। जह सपयासं चक्खु पेक्खइ रूवं जहट्टियं लोए । मंतिपयासपरिगओ रायावि तहेव कजाणि ।।६।। तहा । तस्स कुओ णिवलच्छी सारा सारंगलोयणाओ य । दक्खो वियक्खणो जस्स नत्थि कजावहो मंती ॥७॥ निसुयं जणवायाओ जह सुमई नाम दियवरो एत्थ । अत्थि नियबुद्धिपगरिसगुणेण निज्जियसुरायरिओ ॥८॥ नवरमचक्खू आगारिओ ण गउरवपुरस्सरं रना । निववज्झाए करिणीए ठाविओ एगपक्खम्मि ।।९।।। तत्थारूढो राया भणिओ तेणाह पंथबोरीए परिणयपउरफलाए बच्चामो भक्खणट्ठाए ॥१०।। णूणं णिखजाई ण ताई बोराई जेण वहमाणे । पंथे पंथियलोएण केणई णेव खद्धाणि ।।११।। तब्भक्खणं ण जुत्तं इय वुत्तुं सुमइणा स पडिसिद्धो। विनाणियाणि तम्विहजणभक्खावणपओगेण ।।१२।। तस्स कणिक्कामाणगगुलपलघयकरिसलक्खणा वित्ती । तुट्टेण निवेण कया पढमपसाओत्ति पडिवन्ना ॥१३॥ पन्नाथिरत्तपरिजाणणत्थमह अन्नया पुणो भणिओ। रयणीए अहवासिय टारं अइउद्धरागारं ॥१४॥ तस्सोवणितुमेसो किल किक्काणो त्ति घेप्पइ नवेसो । तेण मुहाओ पुढो भागं जा पच्छिमं ताव ।।१५॥ खररोमोत्ति निसिद्धो मिउरोमाणी हवंति जं जच्चा। सच्चं एस महल्लो वि नेव जाइल्लओ होइ ।।१६।। नरवतिणा सविसेसं सतोसचित्तण सा कया दुगुणा । जा उ कणिकामाणगमाई पुव्वोइया वित्ती ॥१७॥ पुण अन्नदिणे अन्नाओ दोन्नि अहिवासियाउ पेसविया । का परिणिजउ एयासु तेण कुलजाणणाइकए ॥१८॥ वयणपएसाओ जाव सेोणिहाणं करेण तत्थेगा । सणियं २ पुट्ठा नहु खोभमुवागया किंचि ॥१९॥ निल्लज्जजणणिजायत्तणेण जाया इमेरिसा एसा । इय परिचिंतिय वेसासुयत्ति काउं पडिनिसिद्धा ॥२०॥ दुइ
।।२७०।।
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