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मंडलिपरिवाडिमणुसरंतेण । मज्झे ठिच्चा सयमेव वायणं दाउवारद्धो ॥१९७।। अंगाणं पुव्वगयस्स जलहिसंखोहगहिरसद्देण । एत्थतरम्मि गुरवो विणियट्टा सुणिय निग्घासं ॥१९८॥ चितंति लहुं मुणिणो समागया अण्णहा
कह रवोऽयं । चिटुंति जाव निया पहिट्रिया अवगयं ताव ॥१९९।। णूणं न साहुसद्दो एसो वइरस्स किंतु ओस||२४३॥ रिया । तस्संखोहभएणं णिसीहियाइ य कओ सद्दो ॥२०॥ अइदक्खत्तगुणाओ तं सदं मुणिय ठाविय सठाणे । सव्वाओ
विटियाओ गहिओ गुरुहत्थओ दंडो ।।२०१॥ विहियं पायपमजणमह सीहगिरी विचितए एवं । अइसयसुयरयणनिही एसो, मा परिभवं कुणउ ॥२०२॥ एयस्स साहुलोओ ता जाणावेमि एयगुणगरिमा। जेणं एयगुणोचियमेए विणयं पउंजंति ।।२०३। रयणीकाले मिलिया गुरुणा साह निरूविया एवं । जह अम्हे वच्चामो गामे दिवसाणि दो तिण्णि ।।२०४।। अच्छिहामो तो जोगवाहिणो भासिउ समाढत्ता। अम्हं वायणदाया को हेाज गुरू भणइ वइरो।।२०५॥ पयईए विणयलच्छीकुलगेहं विहियगुरुजणाएसा । ते तं वयणं गुरुणो तहत्ति मण्णंति मुणिसीहा ॥२०६॥ पत्ते पभायसमए कयवसहिपमज्जणा य कायव्वा । कालनिवेयणमाईविणयं वइरस्स पकरेंति ॥२०७।। सीहाणुगगुरुणो समुचिया उ कप्पेहि साहु तणएहिं । तस्स निसेज्जा रइया सो सुसिलिटुं समुवविट्ठो ॥२०८॥ तेवि जहा गुरुणो वंदणाइ विणयं तहा पउंजंति ।
सोवि दढकयपयन्नो कमेण अह वायणं देइ ॥२०९॥ जे तत्थ मंदमइणो तेवि य तस्साणुभावओ खिप्पं । लग्गा Aठवेउमालावगे मणे विसमरूवे वि ॥२१०।। जाया सविम्हयमणा ते साहू पुवमहिगए तत्तो । विन्नासणत्थमालावगे
य णेगे य पुच्छंति ॥२११।। जहपुच्छं सो तक्खणमायक्खइ दक्खयागुणसमेओ । ताहे सतोसचित्ता भणंति जइ
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॥२४३।