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श्रीवज्रस्वाभिचरितम्
श्रीउपदे- कइवयदिणाणि ।।२१।। तत्थेव गुरु चिटुंति ता लहुं एस अम्ह सुयखंधो । पाविज्ज समत्ति जं चिरेण लब्भइ शपदे
A गुरुसयासे ॥२१३॥ एक्काए पोरिसीए एसो विअरेइ त तओ तेसि । सो अच्चनबहुमओ चितारयणाहिओ
जाओ ॥२१४।। वइरगुणे जाणाविध समागया सूरिया वरं सेसं । अच्झाविज्जउ एसो त्ति ठवियनियमाणसवि||२४४।। गप्पा ।।२१५।। पुच्छंति पायवडिया साहू सरिओ सुहेण सज्झाओ । तुम्हाणमाममेवं भणंति सुपसंतमुहनयणा
।।२१६।। एसो चिय ता कीरउ वाणायरिओ तओ गुरू भणइ । एसो हाही नियमा मणोरहापूरगा तुम्हं ॥२१७।। तुब्भेहिं तो मा लहउ परिभव छन्नगुणगणो एसो । इय जाणावणहेउ एयस्स वयं गया गामं ॥२१८।। संपइ न एस जाग्गो वट्टइ सुयवायणापयाणस्स । जम्हा कन्नाहेडग वसेण गहियं सुयमणेण ॥२१९।। उस्सारकप्पजोगी एसो ता तं करेमि सेो य इमो। पढमाए पोरिसीए जावइयमहिजउ तरइ ।।२२०॥ अचंतं मेहावी तावइयं दिजई न दिणमाणं । एत्द विहिजइ तह चेव सूरिणा काउमारद्ध ॥२२१।। बीयाए पारिसीए कहेइ अत्थं स जेण दोण्हंपि । कप्पाण समुचिओ काउमेवमेसि दिणा जंति ॥२२२॥ चत्तारि होति सीसा अइजाय-सुजाय-हीणजायत्ति । सव्वाहमचरियपरो तह य चउत्थो कुलिंगालो ।।२२३।। गुरुगणगणाउ अहिओ पढमो बीओ समाणओ तस्स । ऊणो किंची तइओ सनामसरिसो चउत्थो उ ॥२२४।। एवं कुडंबियाणं पत्तावि भवंति तत्थ सो जाओ। अइजाओ सीहगिरि पडच्च तेणं तओ अत्था ॥२२५॥ जे आसि संकिया तस्स तेवि दूरं पयासिया विहिया । गहिओ य दिदिवाओ जावइओ आसि किल गुरुणो ॥२२६।।
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||२४४।।