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________________ श्रीउपदे- शपदे पारिणा श्रीवज्रस्वामिचरि ॥२३०॥ पयडियतिहुयण जणहरिसु । तुह मुहकमल मयंकदलोवमुभालयलु, सुत्तुट्ठिउ कह पेच्छउ जयगुरु ! जण समलु ? ॥२॥ सरलंगुलि-दलकोमल-नहकेसरपवरु, जंघाजुगलमुणालुय-पमोइयमुणिभमरु । तुहतिहुयण-सरभूसण ! निम्मलु कमकमल, सामि ! सरणु पडिवजउ वज्जियपावमलु ॥३॥ चकंकुस-झससत्थिय-छत्तझयंकियह, नमिरामर-सिरसेहर-कुसुमालं कियह । तुह चरणह सुमरणपरभवभयभीयमणु, दुहभरपंकि पडंतु रक्खिहि एहु जणु ॥४॥ सामि ! भमिउं भवसायरि जम्मणसलिलि, नरयतिरिक्ख-नरामर-दारुणदुहकलिलि । एहु जणसरणविहीणउ दीणु दयावणउ, एहि तुह पयपवहणुत्तारणु कुणउ ॥५॥ सरयमयंक-करुजलजसभरभरिय जय ! णिम्मलणाण-पईवपयासियपरमपय ! । परिनिजिय अइदुञ्जय-वम्महसरपसर! तिहुयण जणसिरसेहर ! जय जय जयपवर ! ॥६॥ वियडकवाड-सवच्छह कमलोवमकरह, सरलग्गल-भुयजुयलह संखसिरोहरह। णियसुंदेराणंदिय-सयलवियक्खणह, तुह अंगह बलि किजउ सामि ! सलक्खणह ॥७।। वरकरुणाजलसायर ! तुह पयपणयमुणि !, नवजलहर-रवगहिर-वियंभियदिव्वझुणि ! । तह मह पसिय जिणेसर ! तुह सेवारयह, जह दिण जंति पसंतह परिपालियवयह ।।८।। दारुणकोव-दवानलनीरह, लक्खण-लक्खुवलक्खसरीरह । इय गुणथुइ तुह पव्वयधीरह, सिद्धत्थय निवनंदण ! वीरह ॥ ९॥" इहा नाहं थोऊणं भूमीतलमिलियमत्थओ नमिउं | वंदित्ता य मुणिदे ईसाणदिसाए उवविट्रो ।।१७।। अमयंभोधरधारासरिसेण रवेण जोयणं जाव । पावियवित्थारेणं पारद्धा देसणा पहुणा ॥१८।। जहा जालाकराल-जलणोवरुद्ध ।।२३० ।
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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