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चाणक्य
श्रोउपदे-
शपदे
दद्वारम्
॥२२२॥
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रना पञ्जत्तिमागया जाव । एवं पइदिवसं चिय तेसुं भुंजंतएसु निवो ॥११७।। अछिन्नछुहो तुच्छीभूओ देहेण पुच्छिओ भणइ । अञ्ज न नजइ कजं केणइ निजइ ममाहारो ॥११८। थेवो चिय मे भोगं समेइ जाया मणम्मि वीमंसा । चाणकस्स न एसो अईव जं सुंदरो कालो ॥११९।। ता कोवि अंतरहिओ थाले एयस्स भुंजए तूणं । तो इट्टगाणचुन्नो भायणसालंगणे खित्तो ॥१२०।। बीयदियहम्मि तेणं पविसंताणं निभालिया य पया। दिट्ठा पयपंतीओ दोन्नि | न जेसि च ताओ ते ॥१२॥ दारनिरोहं काउं धूमो संमोहकारओ विहिओ। जायाई अंसुसलिलाइं ताई लोयस्स | नयणाइं ॥१२२।। तक्खणमोत्तिन्नंजणजोगा ते दोवि खुड्डुगा दिट्ठा। चाणकण सलज्जो जाओ वसहीए पेसविया ॥१२३।। अहमेएहि .विट्टालिओत्ति राया जुगंछि लग्गो । भणिओ तेणुब्भडभिउडीभीमभालेण सकयत्थो ।।१२४।। अजं चिय तं जाओ विसुद्धवंसुब्भवो य तुममा । जं बालकालपालियवएहि एएहि सह भोत्तं ।।१२५।। गंतूणं गुरुपासे सीसोपालंभमाह चाणको । जा ता गुरुणा भणिओ तइ सासणपालगे संते ।।१२६॥ एए छहापरद्धा निद्धम्मा होउमेरिसायारा । जं जाया सो सव्वो तवावराहो न अन्नस्स ॥१२७।। लग्गो पाएसु इमो खामह अवराहमेगमेयं मे । एत्तो पभिई सव्वा चिंता मे पवयणस्सावि. ॥१२८।। जाओ मणे चमको एसो चाणक्यस्स जह एवं । बहुजणविरोहपत्तस्स राइणो मा न कोइ विसं ।।१२९।। दिजा, तओ अलक्खियमग्गेण विसेण भाविउ लग्गो। तं जह खुद्दपउत्ताई नो विसाई अभिभवंति ॥१३०।। निचं पासोवगओ तं भुंजावेइ अन्नया कहवि । नो पत्तो गब्भवईदेवीपासम्मि जेमेई ॥१३॥ इहे य तग्गासं अमुणियपरमत्थएण तेणावि । अइपेमपरवसेणं दिनो नियथालओ गासो
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