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8 तद्दिवसेण जायमेत्ताण । केसेहिं नहं छाएमि एत्थवि ता मे होलवाएहिं ॥१०१॥ धण्ण पडिपुन्नकोट्ठागारो माणाचलं
समारूढो । सुपयट्टनट्टगीओ अन्नो एयारिसं भणइ ॥१०२॥ दो मज्ज्ञ अत्थि रयणाणि सालिपसूईया गद्दभिया य ।
छिन्ना छिन्नावि रुहंती एत्थवि ता मे होलवाएहिं ॥१०३।। अन्नो संतोसपरो एत्तो य सुहित्तणं परं पत्तो। मंद॥२२१ ।।
कयनगीओ सुभासियं एरिसं भणइ ॥१०४।। मइसुकिलनिच्चसुयंधो भन्ज अणुव्वयनत्थि पवासो । निरिणो य दुपचसओ एत्थवि ता मे होलवाएहिं ।।१०५॥ इय नाऊणं तेसिं सव्वेसिं पाढविच्छड्डे । मग्गित्ता जहजोग्गं कासा बुड्डि परं नीओ ॥१०६।। होले गोले वसुलेत्ति वयणओ नीयपत्तसंभासेो। होन्जत्ति इहं विहिओ तं पुण वाइत्तओ नेओ ॥१०७।। एवं चिंतिज्जंतो चाणक्केणं स चंडगुत्तनिवो। पालेइ रजमोमं अहन्नया दारुणं जायं ॥१०८॥ वुड्डा वासेण ठिया गुरुणो संभूविजयनामाणो। तत्थ पुरे नियसीसा विसज्जिया जलहितीरेसु ॥१०९॥ अहिणवठवियमुणीसरकहिजमाणेसु मंततंतेसु । खुडुगदुगस्स सन्निहियभावओ उवगयं सव्वं ॥११०॥ गंतूण पंथभागं विरहुकंठं गुरुण तं बलियं । सेसो साहुसमूहो पत्तो निटिठाणेसु ॥११॥ सयमेव गुरु हिंडइ भिक्खट्ठा सावगाइ गेहेसु । फासुयमहे- सणिज्जं जं भिक्खं परिमियं लहइ ॥११२।। दाउं पढमं तेसिं अप्पणा जमवसेसयं तस्स । तं भुंजइ भायणहीण भावओं वुड्डभावाओ ॥११३॥ जाओ अइतणुयतणू तं दठ्ठ खुड्डुगा विचितंति । न कयं सुंदरमम्हेहिमागया जमिह अस्स कओ। ११४॥ उवरोहो बाढमओ अन्नं भायणपहं गवेसेमो। अंतद्धाणकरं जं तमंजणं जाइयं तेहिं ।।११५।। गुरुणो अप| रिकहित्ता भायणसमयम्मि चंदगुत्तस्स । विहियंजणा पविट्ठा नय दिट्ठा केणइ जणेण ।।११६॥ लग्गा सहेव भोत्तुं ।
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