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दद्वारम्
श्रोउपदे- धिट्ठो बडुउत्ति निच्छूढो ।।२२।। एसो पाउक्खेवो पढमो देसंतराभिगमरूवो। अह अन्नया विसंको वहुजणपच्चक्ख- चाणक्यशपदे मुच्चरइ ॥२३॥ "कोशेन भृत्यश्च निबद्धमूलं पुत्रैश्च दारश्च विवृद्धशाखम् । उत्पाटय नन्दं परिवर्त्तयामि महामं
वायुरिवोगवेगः" ॥१॥ निजाओ नगराओ ताओ मग्गइय रायपयजोग्गं । पुरिसं निसुयं च पुरा बिंबंतरिओ निवो
होहं ॥२४॥ महिमंडलं भमंतो पत्तो तो मोरपेासगग्गामे । चाणको परिवायगवेसधरो नंदतणयम्मि ।।२५।। तम्मि य ।२१६।।
गामे गामाहिवस्स धूयाए डोहलो जाओ। चंदपियणम्मि न य सो सक्किन्जइ पूरिउ कहवि ॥२६।। तो सा अपुजमाणम्मि तम्मि विच्छायवयणतामरसा। अवंतमिलाणतणू जीवियसेसत्तणं पत्ता ॥२७॥ भिक्खं गवेसमाको सो पुट्ठो जइ परं इमं गन्भं । मम देहि चंदकिंबं पाएमि पडिसुयं तेहिं ॥२८।। पत्ते पुन्निमदिवसे चिवडो पडमंडवो कओ छिदं । कयमस्स मज्झभागे पत्ते तो मज्झरतम्मि । २९।। जं जं रसालुदव्वं तं तं मीलित्तु भरियखीरस्स। थालं तक्खणसुत्तुट्टियाए सद्दाविया भणिया ।।३०।। पुत्ते! पिच्छसु चंदं पिबसु य जा पाउमुजया ताव । पच्छन्नठिओ पुरिसो मंदं छाएई तं छिदं ।३१।। अवणीओ डोहलओ कमेण , जाओ सुओ कयं नामं । जह एस चंदगुत्तो पुत्तो चंदस्स पाणाओ ॥३२॥ सो
"॥२१६।। संवड्इ पइदिवसमेव रजाणसारिचरियपरो। चाणको अत्थत्थी हिंडइ महिमंडलमसेसं ।।३३।। तह तविहपव्वयमाइएस ठाणेस् मग्गए निउणं । रुप्पाइधाउविविहाणि ओसही रयणमाईणि ।। ३४॥ अन्नम्मि दिणे सो चंदगुत्तो चेडो रमेइ चेहिं । सद्धि निवनीईए बाढं तदणुग्गहाइपरो ॥३५।। एत्थावसरे पत्तो चाणको तं निएइ रममाणं । दिजउ अम्हवि किपित्ति मग्गिओ तेण सेो भणइ ॥३६॥ एयाओ गावीओ लएहि, (चाणक्य:-) मा काइ मं न मारेजा । (चन्द्र
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