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________________ तदभिमुहं खित्तमणो गओ य सेा नियगभवणम्मि ॥१०९।। परदारलोलयाए दूई पेसेइ ताहिं कुवियाहिं । निद्धाडिया | न राया इय चरिओ होइ सा भणिया ॥११०॥ बीयदिवसम्मि भणियं आरुसियाओ तइज्जए भणिया। सत्तमदिवसे - अम्हं देवकुले होहि ही जत्ता ।।१११।। तत्थवि रहो भविस्सति भाया रक्खेइ इह रहा निच्चं । पज्जोयसमागारो मणुओ | पज्जोयगो नाम ।।११२।। उम्मत्तओ कओ भन्नई य अभएण एस मे भाया। दिव्ववसेणं जाओ इमेरिसो सारवेमि - अह ।।११३।। रुद्धो रुद्धो नस्सति उक्खिविऊणं रडतओ संतो। आणिअई पुणो पुण भणंतओ एरिसं वयणं ।।११४॥ उगृह रे रे अमुगा! पञ्जोयनराहिवो अहं इमिणा । हीरामि अभयवणिणा एवं विस्सासिए लोए ।।११५।। सत्तमदिवसे दुई पेसविया ताहि सा इमं भणिया । एउ इह एगागी दिणद्धसमयम्मि नरनाहो ।।११६।। मयणाउरो अचितियपरिणामो गिहगवक्खभित्तीए । लग्गा पुवनिवेसियमणएहि दढं च पडिवण्णो ॥११७।। बद्धो पल्लंकेणं समं तओ निग्गओ दिवसओवि। पुरमज्झेणं अभओ भणइ विज्जालयं एसो ॥११८।। निजइ एवमसंबद्धभासा वाउवेगवाउलिओ। तत्तो आसरहेहिं रायगिहं पाविओ खिप्पं ।।११९।। नायं सेणियरन्ना असिमुग्गीरियपहाविओ जाव। अभएण वारिओ ता कि कजउ भणइ तो अभओ ॥१२०।। एसो महप्पभावो राया बहुनिवइमाणणिज्जो य । सकारित्ता मयादरेण नयरिं नियं चेव ।।१२।। पाविजउ तह विहिए परोप्परं पेमनिब्भरं जायं । परिणामिगाओ एयारिसाओ अभयस्स बुद्धीओ ॥१२२।। इति ।। अथ गाथाक्षरार्थः,-पारिणामिक्यां बुद्धौ अभयो दृष्टान्तः । कथमित्याह;-'लोहग्गसिवणलागिरिवरेसु' त्ति लोह EKXXXXXXREAKKAKKEXX 1१९१।।
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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