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________________ ॥१८९।। कोढिय ! अप्पयं न याणेसि । णूणं जारिसओ हं कुट्टी काणावि तह एसा ।।७८।। इय परिभाविय फालियअंतरपडओ पलोयए जाव। अकलंकसोमसव्वंगसुंदरंमि तयं नियइ ॥७९।। वम्महमणहररूवो सपिवासं तीए सोवि निज्झाओ । पोढपणयाण ताणं मिलणा अञ्चग्गला जाया ।।८०।। नवरं कंचणमाला दासी धाईय सञ्चिय मुणेइ । नउ अन्नो कोवि अह अन्नया ओ आलाणखंभाओ ।।८।। अनलगिरी निप्फडिओ समुग्गउग्गाढमयभरो संतो। रन्ना अभओ कि कीरउत्ति परिपुच्छिओ भणइ ।।८२।। गायओ उदयणराया भणिओ सो भणइ कन्नंगाए समं । भद्दवई आरुढो करिणं गायामि तह विहियं ॥८३।। अंतरदिन्नपडेहि गइओ हत्थीवरो इमा दुइओ। लद्धो भएण तह तम्मि चेव निस्कितओ विहिओ ॥८४।। मुत्तघडियाउ चउरो पुवि आरोविया उदयणेण । वासवदत्तासहिआ पलाइओ नियपुगभिमुहो ।।८५॥ संनज्झइ जाव करी अनलगिरी ताव अइगया करिणी। पणुवीसजायणाई संनद्धो पिट्ठओ लग्गा ।।८६।। जाव अदूरपदेसं पत्तो सो ताव पाडिया घडिया। लग्गा उस्सिघेउं करिणीमुत्तं तओ झत्ति ।।८७।। पणुवीसजोयणाई अन्नाणि गयाउ साउ इय तिन्नि । जा भिन्ना घडियाओ ता सो कोसंबिमणुपत्तो ।।८८।। जाया य अग्गमहिसी सा तस्स पिया य जीवियाओवि । एवं कित्तियमेत्ते कालम्मि गए अवंतीए ॥८९।। असुरग्गी उब्भूओ सो धूलीउवलइट्टगाहिंपि । जलइ च्चिय एवं दारुणम्मि पत्ते नयरिदाहे ।।१०।। चितइ राया केरिसमसमंजसमिहिमावडियमित्थ । पट्टो अभओ पभणइ जाणगजणभासियं एयं ॥९१।। प्रतिशाठ्य शठस्येह विषस्य विषमौषधम् । अग्नेरग्निविजानीयाजाड्य स्योष्णप्रयोजनम् ॥९२॥ विहिओ विजाइअग्गी विझाओ तप्पओगओ एसो। एवं लद्धो तईओ वरो निहित्तो तहचेय ।।१८९।। XXXR
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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