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________________ श्रीउपदेशपदे० ॥१८८॥ पज्जोओ ॥६॥ पारिणा मिक्यां भणिओ वरेसु वज्जिय बंधणमोक्खं तओऽभओ भणइ । तुभं चिय हत्थगओ अच्छउ एसो वरो मज्झ ॥६४।। श्रीअभय अन्नयाऽनलगिरी भग्गालाणो मयाउलो धेत्तुं । ना तीरइ तो अभओ पुट्ठो तेणावि पडिभणियं ॥६५॥ उदयणनामा । वच्छाहिनायगो गायउत्ति आणीओ। कह सेो वासवदत्ता पज्जोयसुया कलाकुसला ॥६६॥ तत्कालं गंधव्वे नत्थि पहाणोऽत्थ उदयणादनो। ता से घिप्पउ अभओ भणाइ एईए सिक्खत्थं ॥६७।। सेा पुण केण उवाएण धिप्पिही पुच्छिओ। भणइ अभओ सा जत्थ करि पेच्छइ गायंतो तत्थ तं सवसे ॥६८॥ आणीय बंधट्ठाणं पावेइ न जाणइ य सो खित्तो। इमिणावि जंतमइओ हत्थी काराविओ मुक्को ।।६९॥ विसयंते चारिजइ वणयरलोयाओ लद्धवृत्तंतो। वच्छाहिवो ससेणो गओ तहि तस्स पेरते ॥७०।। मुक्को खंधावारो सयं च कलरावपूरियदियंतो । जा लग्गो गाएउ ठिओ करी लेप्पगमउव्व ॥७१॥ जा संनिहाणमेसो तस्स गओ ताव पुवठविएहि । गहिओ पच्छन्ननरेहिं पाविओ नयरिमुजेणिं ॥७२॥ भणिओ पञ्जोएणं काणा धूया ममत्थि सा गेयं । तं सिक्खवेहि पेच्छसु मा जेणं लजिया | ॥१८८॥ होही ।।७६।। तीएवि साहियमिमं एसा अज्झावगा विण?तणू । कु?ण सुठ्ठ वर्ल्ड मा होज्जा कयायरा वच्छे ! ॥७४।। सो जवणियंतरं तं सिक्खावेइ तस्स सद्देण । सा हीरइ अचंतं गाणिसरेणं वणहरिणो ॥७५।। एसो कूट्रित्ति परं न विलोयइ सा अमंगलं हाही । अञ्चतं कोउगपरा सा परिचिंतइ कहं एसो ॥७६॥ दट्टव्वोत्ति विमूढा सम्म सरसंगहं कुणइ न जया । रुद्रुण तेण भणिया विसंठुलं पढसि किं काणे ! ॥७७।। सावि सरोसा भासइ किं EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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