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________________ अगद० गणिकाथिकट्टा० ___ श्रीउपदे- गणिया रहिए एक सुकोस सढित्ति थूलभद्दगुणे। रहिएण अंबलंबी सिद्धत्थगणट्टदुक्करया ॥१७॥ शपदे इह नवमनंदकाले कप्पगवंसम्मि आसि सुपसिद्धो। सयसंखावच्चत्तणगुणाउ सयडालगो मंती ।।१।। तस्स पहा*णकलत्तम्मि दुण्णिजाया सुया सुयवरिट्ठा । सिरिथूलभद्दनामो पढमो बीओ य सिरिउ त्ति ॥२॥ जक्खा य जक्ख दिन्ना भूया तह भूयदिन्नया नाम । सेणा वेणा रेणा तह सत्त इमाउ धूयाओ ॥३॥ एया कमेण इग-दो तिगाहिं वाराहि सुणियगहणसहा । जिणवयणरत्तचित्तो एगंतणेव सड्डालो ।।४॥ तत्थत्थि वररुई नाम माहणो सयलविष्पकुल||१७०।। केऊ । अट्टसएण सिलोगाण नंदमुवचरई सो निचं ॥५॥ राया सगडालमुहं पासइ मिच्चत्तमिय मुणतो सो । जा न पसंसइ एसो वि तस्स न पसन्नओ होइ ।६।। तब्भज्जाए सेवापरायणो सो तओ दृढं जाओ। भणीओ तीइ किमत्थं तमेव* माराहिसि ममंति? ||७।। परिकहिए सब्भावे तह काहं जह पसंसए एसेो। इय पडिवज्जिय तीए भणिओ भता किमत्थं तं ।।८।। न पसंससि वररुइकव्वमाह एसोवि मच्छिमिय काउ। अइनिब्बंधुवरुद्धो महिलाए कारिओ करणि ।।९।। अण्णदिणो रायपुरो वररुइणा गाहियं नियं कव्वं । पासट्ठिओ अमच्चो भणाइ अब्बो ! सुपढिय ति ।।१०।। तो अट्रसयंरन्ना दीनाराणं दवावियं तस्स । जाया पइदिवसं चिय एत्तियमिता य से वित्ती ॥११॥ अत्थक्खयं पलोइय भणियममञ्चेण देव? किमिमस्स । देहित्ति तेण वुत्तं सलाहिओ जं तए एसो ॥१२।। भणियममच्चेण मए अविणटुं पढइ पुव्वकव्वंति । सलहियमेयस्स तओ रन्ना पुदो कहं एवं ।।१३।। तेणं भणियं मझं धूयावि पढंति पढइ जं एसो। उचियसमए य पत्तो पढणत्थं सो निवस्ते ॥१४॥ जवणियअंतरियाए धरिया मतिस्स सत्त धूयाओ। जक्खाइ पढमवाराइ अहिगयं से पढंतस्स ।।१५।। ता तीए नरवइणो पुरओ अविणट्ठमुच्चरंतीए । वाराहिं दोहिं अहियं बोआए तोइ वुत्तम्मि ।।१६।। तइयाए वाराए तइयाए अहिगयं च वृत्तं च । एवं वारावूडढीइ सेसगाहिंपि उवलद्धं ।।१७०। k**XX
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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