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________________ चित्रकार श्रीउपदेशपदे पुत्रह० ।।१५२।। XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXRM सव्वेसि नामाइं ॥७॥ लिहियाइं पत्तए अह घडम्मि छूढाइं मुद्दीओ घडओ। जो जस्स जम्मि वरिसे नामुग्घाडो तओ तम्मि ।।८।। चित्तेइ जक्खमेयं एवं कालो गओ बहू जाव । ता अन्नया कयाई कोसंबीओ वरपुरीओ ॥९।। एगो चित्तयरसुओ जणगघराओ पलाइओ तत्थ । सागेयचित्तगरगहमागओ सो य थेरिसुओ ।।१०।। एसो य निव्विसेसो दिट्रो थेरीइ निययपुत्ताओ। मित्तीए जंति दिवसा तेसिं नियकम्मनिरयाणं ॥११।। अह कहवि तम्मि वरिसे थेरीपुत्तस्स वारओ जाओ। सा अइविच्छायमुही पुणो पुणो रोविउं लग्गा ।।१२।। भणिया तेण म रोयसु अम्मे! सचं भलामि अहमेत्थ । किं में तुम न पुत्तो अप्पाणं तेसि जं वसणे ॥१३।। इय जंपिरीवि थेरी वयणेहि तेहिं तेण संठविया । तेणुज्झियसोगभरा जह अंब ! निराकुला चिट्ठ ॥१४॥ नाओ तेण उवाओ विणएण जहा सुरा पसीयंति । तो उत्तमसविणयसमन्निएण मे इत्थ होयव्वं ॥१५॥ विहियं छट्ठक्खमणं बंभच्चेराइओ तहा विणओ। वन्नगकुचगमल्लगमाइ सव्वं नवं च कयं ।।१६।। हाओ सदसे वत्थे परिहित्था पोत्तियाइ मुहबंधं । काऊणऽटुगुणाए कलसेहि | | नवेहिं पहावित्ता ।।१७।। तं चितेइ सपणयं पच्छा पाएसु निवडिओ भणइ । खमह जमेत्थऽवरद्ध मए तओ तोसमावण्णो ।।१८।। जक्खो भणेइ जं तुज्झ रोयए तं वरेहि वरमेगं । सेो भणइ लोगमारि मा कुण एसुच्चिय वरो मे ॥१९॥ भणियं जक्खेण जहा जं तं न हओ हणामि नो अन्ने । तो अन्नं वरमेत्तो मग्गसु दूरं पसन्नो ते ।।२०।। तो जस्स एगदेसंपि कहवि पासामि दुपयमाइस्स । चित्तेमि तस्स दिट्ठाणुसारिरूवं समग्गंपि ।।२१।। इय भणिए तेणेसा एवं हाउत्ति मन्नए सम्मं । तो रन्ना सक्कारं साहुक्कारं च सा नीओ ॥२२॥ ||१५२॥
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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