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________________ ।।१५१॥ ते पलाइउ लग्गा। भणिओं कप्पेण निवो पच्छा एसि विलग्गेहि ।।१२२।। गहिया हत्थी आसा य बहधणं सिबिरसंतियं तेसि । ठविओ निवेण सो तम्मि चेव कप्पो नियपयम्मि ।।१२३।। सव्वंपि रजकजं वसीकयं तेण नियय. बुद्धीए। मंती पुव्वविरुद्धो धणियं च निरुद्धओ विहिओ ।। १२४॥ अइतिक्खोवि दवग्गी दहंतओ मूलरक्खणं कुणइ । मिउसीयलो जलोहो समूलमुम्मूलइ दुमोहं ।।१२५।। परिभावितेण इमं तेण ततो केवलेण सामेण । नियलच्छिमसहमाणा समूलमुम्मूलिया रिउणो ।।१२६।। जह जलणाउ सुवन्नं उत्तिण्णं भूरिभासुरं होइ। तह सो वसणाउ तओ पत्तो अइसमहियं तेयं ॥१२७।। अच्च ग्गयवेरग्गेण तेण परमं समुन्नई नीओ। धम्मो जिणाण जिणचेइयाण पूयाइकरणेण ॥१२८। सुइ सीलाओ कुलबालियाउ वीवाहीयाउ नियवंसो। नोओ विसालभावं परमं तोसं च बंधुजणो ॥१२९।। तस्सेसा वेणइगी बुद्धी बुद्धाखिलत्थसत्थस्स । कालेण समाराहियजिणवयणो सो दोवं पत्तो ॥१३०।।इति।। अहवा सोमडनामो चित्तयरसुओ इमीइ आहरणं । जह तस्सेसा बुद्धि संजाया वोच्छमहमित्तो ।।।। सांगेयं नाम पुरं समत्थि सव्वत्थसाहणसमत्थं। उत्तरपुरच्छिमाए दिसाई अइरेगरमणिज ।।२।। सुरपियजक्खाययणं तत्थट्टियपट्टनिचरम्ममहं। पवणपणोलण चलधवलधयवडाडोवरमणिकं ॥३॥ सन्निहियपाडिहेरो सो जक्खो विविहचित्तकम्मेहिं । पइवरिसं चित्तिज्जइ कीरइ य महामहो तस्स ।।४।। नवरं चित्तियमेत्तो त चेव य चित्तकारगं हणइ । जइ पुण नो चित्तिजइ मारिमपारं पुरे कुणइ ॥५॥ पाणभएण पलाया चित्तयरा चितियं च नरवइणा। एस अचित्तिजतो होही अम्हाणवि वहाय ॥६॥ सव्वे झत्ति निरुद्धा पलायमाणा पहंतरालम्मि । संकलिया एगट्ठा तेसि XXXXXXXXXXXXXXXXXXX ।।१५।।
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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