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________________ । शपदे द्वा०कलप श्रीउपदे- जाया पच्चंतनराहिवेसु वत्ता जहा गओ निहणं । कप्पो सपुत्तदारो लद्ध च्छाहा तओ झत्ति ।।१०७।। ते रोहंति * अर्थशा० * समंता पाडलिपुत्तं महंतसेणाहि । जाओ य निरवकासो नंदो सहसा निराणंदो ।।१०८।। अन्नमुवायं सो अलभमाणगो चारगाहिवे भणइ । किं कोवि अत्थि कप्पसंबंधी तत्थ कवम्मि? ॥१०९।। पुत्तो वा महिला वा दासो वा अइपहाण कमंत्रि० बुद्धिजुओ। जं तस्स परियरो बुद्धिभायणं सुव्वइ जणम्मि ॥११०॥ भणियं चारगपालगपुरिसेहिं देव! अत्थि कोवि १५०॥ तहिं । जो भत्तं पडिगाहइ खित्तो आसंदओ तत्थ ॥१११।। तम्मि समारोवेता कुवाओ कढिओ किससरीरो। नाणा विहोसहेहिं पउणसरीरो य संजाओ ।।११२॥ पागारोवरि काउ गहिओजलवेससुंदरागारो । राईण दरिसिओ सो *ते भीयमणा खणे जाया ।।११३॥ तहवि य नंदं परिहीणसाहणं जाणिऊण सुट्ट्यरं । काउमुवद्दवमहिगं ते पारद्धा, तओ लेहो ।।११४।। णंदेणेसि दिन्नो जो तुब्भं सव्वअणुमओ कोइ । तं पेसेह जमुचिवं संधि अन्नं च काहामो ॥११५।। कप्पो नावारूढो गगाइ महानईइ मज्झम्मि । तप्पेसिओ य पुरिसो मिलिया थेवंतरेण ठिया ॥११६।। करसन्नाए तत्तो कप्पगमंती बहुं भणइ तेसि । जह उच्छृण कलावे हेट्रा उरि च छिण्णम्मि ।।११७।। एवं च दहियकुंडे हेट्ठा उवरिं च विहियछेयम्मि। सहसत्ति भूमिपडियम्मि होइ तं भणसु किं भद्द ! ॥११८॥ वामोहजणA. गमेयं भासित्ता कप्पगो तओ झत्ति। पायाहिणीकरेत्ता नियत्तओ आगओ तरियं ॥११९॥ इयरोवि अइविलक्खो नियत्तओ पुच्छिओ सलज्जो य । नय किंचि अक्खि तरइ भणइ बडुओ बहु लवइ ।।१२०॥ मुणियं च तेहिं एसो * कप्पेण वसीकओ न अम्ह हिओ। कहमन्नह अइकुसलो. बहुप्पलावि कओ कप्पो ।।१२१।। संजायचित्तभेया दिसोदिसि | KXXXXXXXXXXXX XXXXXXXXXXXXXXXXXX
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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