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श्रीउपद शपदे०
अर्थशास्त्रद्वा०कल्पकमंत्रि
कथा
।१४६।।
आसेणारोविओ पिटैि ॥४६।। चलियं चामरजुयलं धरियं छत्तंबरं महाछत्तं । सयलाई वाइयाई तुराणिवि भइसद्दाई ॥४७॥ रायाभिसेयसारं स रजचिंताकरेण लोएण । ठविओ उदाइरन्नो पयम्मि सुन्ने मणुन्नम्मि ।।४८॥ तस्स रुयक्खरभावेण ते य भडा दंडभोइया सव्वे । न करेंति विणयमेसा अह चितइ कस्स हं राया ! ॥४९॥ अत्थाणीमज्झगओअहन्नया उट्ठिऊण निक्खंतो । पुण अइगओ न तेहिं एसों अब्भुट्ठिओ किंचि ॥५०॥ दावियकोववियारेण तेण एए हणेह भो गाहे । भणियमवरोप्परमिमे सोउं हासाउला जाया ॥५१॥ तो तिव्वरोसविसपरवसेण अत्थाणमंडवदुवारे । लेप्पमए पडिहारे अवलोइय भासियं तेण ॥५२।। जह नामेए विणयं न करेंति, किमंग तुम्ह विणयस्स । संपन्ना परिहाणी समुट्ठिया ते तओ सहसा ॥५३।। गयपाणा केइ कया हत्थट्ठियनिसियखग्गघाएहिं । ते भडदंडाईया अन्ने नट्ठा भओ तट्ठा ॥५४॥ तो मउनियकरकमला भूवीढलुठंतमत्थया सव्वे । खामित्ता रायाणं विणीयविणयत्तणं पत्ता ।।५५।। तस्स कुमारामच्चो न कोवि सव्वो तहाविहो अत्थि । तं आयरेण मग्गइ नयलग्गवि कोऽवि से हत्थे ॥५६।।
एयं ता एवं चिय नगरबहिं कविलनामगो विप्पो । निवसइ बंभणजणसमुचियाई कजाइं कुणमाणो ॥५७।। पत्ता वियालसमए अह केई साहुणो, दुहं इहि । नगरंतो पविसिज्जइ ठिया तओ तस्स होमगिहे ॥५८। सो पंडियाभिमाणी कविलो पुच्छाउ काउमाढत्तो । उवणीओ अइनिउणो विणिच्छओ पुच्छियत्थाण ॥५९।। जाओ य सावा सो जिणवयणं चिय परंति मन्नंतो । एवं काले वच्चंतयम्मि अह अन्नया अन्ने ॥६०॥ वासावार्स
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