SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ KXXXXX ॥३।। असमंजसं नियच्छइ सव्वं तं चिंतियं तओ तेण । णूण कुसीसेण कयं कहण्णहाऽदसणं तस्स ॥३२॥ कह कल्लाणकलावेकमूलमुस्सप्पणा जिणमयस्स । पगया, कह मालिण्ण अखालणिज्ज इमं पत्तं ॥३३॥ भणियं च,-- "अन्नह परिचितिज्जइ सहरिसकं दुज्जएण हियएण। परिणमइ अन्नविय कज्जारंभी विहिवसेण" ॥३४॥ ता किं एत्तो IN उचियं नणं नियपाणचागकरणेणं । एसो धम्मकलंको दुरंतओ मे समुत्तरइ ।।३५।। काऊणं तकालोचियाई कजाई धीरचित्तेणं । दिना सा नियकंठम्मि कत्तिया कंकलोहस्स ।।३६॥ जाव पभाए सेजापालगलोगो निभालए सालं । दिवो राया सूरी दोवि य पंचत्तणं पत्ता ।।३७।। 1१४५॥ तत्तो संखुद्धो सो अम्ह पमाओ इमो त्ति मन्नतो । तुण्हिक्को च्चिय चिट्टइ जा ता सहसा पुरे तत्थ ॥३८॥ * जाओ जणप्पवाओ जह एयमणुट्ठियं कुसीसेण । णूणमभब्वो एसो कवडेण वयं पवन्नो त्ति ।।३९॥ पत्ता ते दावि दिवं इओ य हावियदुयक्खरो नंदो । न्हावियसालाइ गओ पत्थावादागयस्स बहिं ॥४०॥ उज्झायस्स निवेयइ जहा *मए अञ्ज सुविणओ दिट्ठो । रयणीविरामसमए जह नगरमिमं समंतेहिं ॥४१।। आवेढियं समंता एत्तो सुविणयफलं. परिकहेहि । सो सुविणयसत्थण्णू तं नेइ धरं तओ तत्थ ॥४२॥ धोयसिरस्स निया से दिन्ना धूया परेण विणएण। उग्गच्छंतो व्व रवी सहसा सो दिपिउं लग्गा ॥४३॥ सिबियाइ समारूढो हिंडइ जा सो पुरस्स मज्झम्मि । * तावंतेउरसज्जावालीहिं मओ निवो दिट्रो ॥४४॥ सहसुक्कुइयमेयाहि रजचिताकरेण ओ आसा । अहिवासिओ पुरो हियलोएण पुरंतरे णीओ ॥४५।। अवलोइओ स ण्हावियदुयक्खरो फुरियफारतणुकिरणो । उग्घडियपुव्वपुण्णो KAKKAKKXXXXXXXI XXXXXXXXX********* ॥१४५।।
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy