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श्रोउपदे
शपदे
औत्प० भरत. रोह
वि०
।।९६।।
णिओ रन्ना, तओ भणइ ॥२८।। इत्थेव सिलागामे भरहस्स सुओ बसामि कब्जेण । पिउणा सद्धि इह आगओम्हि, संपइ तहिं जामि ॥२९।। रण्णो पंच सगाई मंती एगूणगाइं अह संति । जो चूडामणिसरिसो तेसि तं मग्गए एकं ॥३०॥ तत्तो खणमेत्ताओ काओ कजाई आगओ भरहो। तेण समं संपत्तो स रोहओ निययगामम्मि ।।३१।। आरद्ध नरवइणा बुद्धीइ परिक्खणं तओ तस्स । भणिओ गामो बाहिं सिला विसालत्थि जा तीए॥३२॥ मंडियपरिसरदेसं मंड* वमुदंडथंभपब्भारं। कुणहत्ति एव भणिए गामो सो आउलोहूओ॥३३।। पडिया भोयणवेला स रोहगो नो जिमेइ पियरहिओ। मा मे विससंजोगं विराहिया दाहिही जणणी॥३४।। अह सो पसण्णवयणो उस्सूरसमागयं भणइ पियरं । मज्झं महल्लवेला छुहापिवासापरद्धस्स ।।३५।। सुहिओ सि पुत्त ! अइदारुणेत्थ आणा समागया रणो। तो तीए वाउलमाणसाण संजायमुस्सूरं ।।३६।। सुणियाएं आणाए लद्धरहस्सेण तेण संलत्तं । भुजह ताव जहिच्छं पच्छा जुत्तं करिस्सामि ।।३७।। भुत्तुत्तरेण भणिओ सो गामो रोहएण जह खणह । हेट्ठा सिलातलं तह थंभे उत्थंभए देह ॥३८।। एवं विहिए संते स मंडवो तेसि तक्खणं जाओ। आवेइओ य रण्णो कह केण कओ? निवो भयइ ॥३९॥ तलभूमीखणणेणं थंभयउत्थंभणेण य कओ सो। भरहतणयस्स रोहगनामस्स मइप्पभावेण ॥४०॥ विहिओ संवाओ से अन्नं आपुच्छिऊण संनिहियं । इय रोहगस्स बुद्धी भणिया उप्पत्तिया नाम ॥४१।। एवं अण्णेसुवि मेंढगाइनाएसु जायणा कजा । उप्पत्तियबुद्धीए जा एयकहापरिसमत्ती ॥४२॥
अथ पूर्वोक्तसंग्रहगाथाचतुष्टयस्याक्षरार्थः;