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________________ कर्मजाया दृष्टन्ताभिधाना पारिणामिनिकीस्वरूपंच श्रीउपदे-* सांप्रतमुद्दिष्टज्ञातानां स्वरूपं बिभणीषुरादावेव भरहसिलेतिज्ञातसंग्रहगाथां भरहसिलमें ढकुक्कुडेत्यादिकामष्टाविंशतिशपदे गाथाभिर्व्याचष्टे; उज्जेणिसिलागामे छोयर रोहण्णमाउवसणम्मि । पितिकोवेतरगोहे छायाकहणेणमब्भुदओ ॥५२॥ ___ मालवमंडलमंडणभूया नयरी समुद्धर धणोहा । नामेणं उज्जेणी समत्थि वित्थिण्णसुरभवणा ॥१॥ तत्थ रिउपक्ख||९४ । विक्खोहकारओ सइ गुणी सुदढपणओ। आसी जियसत्त नामा नरनाहो नयगुणसणाहो ॥२।। सो भुंजइ निरवजं नियरज्जं चोजकारगं भुवणे। धम्मत्यकामपुरिसत्थसुंदराराहणपहाणो ॥३॥ नाडयनट्टकहाणयगीयाइसु कोसलं परं पत्तो। कोहलतरलमणो सविजजणजोग्गकन्जेसु ॥४।। अह उन्जेणिसमीवे अत्थि सिलासंगओ सिलागामो। गुणनिप्फाइयनामो गामो भरहो य तत्थ नडो ॥५।। सो नाडयविजाए लद्धपसंसो पहू य तग्गामे। णामेण रोहओ सोहओ य गामस्स तस्स सुओ ।।६।। अह अन्नया कयाइवि रोहयमाया, मया, तओ भरहो। अण्णं तज्जणणि संठवेइ घरकजकर णकए ॥७॥ बालो य रोहओ सा य तस्स हीलापरायणा हवइ । उप्पत्तियबुद्धिसमन्निएण तो तेण सा भणिया ॥८॥ * अम्मो ! ममं न वट्टसि जं सम्म, सुंदरं न तं होही। तह काहमहं एत्तो जह तं पाएसु मे पडसि ।।९॥ एवं वच्चइ कालो अहण्णया ससिपयासधवलाए। रयणीइ जणगसहिओ पासुत्तो एगसिजाए ॥१०॥ तो रयणिमज्झभागे उट्टित्ता उब्भ*एण होऊणं । दट्ट ण । नियं छायं काउं परपुरिससंकप्पं ॥११।। उच्चसरेणं जणओ उट्टाविय भासिओ जहा ताय । पेक्खसु परपुरिसो एस जाइ सहसुट्टिओ कोइ ।।१२।। जाव स निद्दामोक्खं काऊणं लोयणेहिं जोएइ । ताव न दीट्ठो KXXXXXXXX*****kakkkkkkkkkXXXI kXXXXXXX******************** ॥९४।।
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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