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________________ श्री अथ सुसढचरित्रम्। तवचरणरओ विहरइ सो कित्तिअंकालं॥ ९६॥ पुणरवि संजमसिढिलो, छट्ठट्ठममाइ जाव छम्मासे। काऊणं सीअलजल-परिभोगं कुणइ सच्छंदं ॥ ९७ ॥ जं पुण गुरुणो गुरुगुण-गुरुणो पच्छित्तमुवदिसंति फुडे । तं न करइ मूढमई, विहेइ सव्वं जहिज्छाए । ९८ ॥ पावासवदाराइं, नहु रंभइ सिढिलइ अ सज्झायं । आवस्सयजोगेसु, तहा तहा चरणकरणं पि॥ ९९ ॥ जंजं सोहिनिमित्तं, पच्छित्तं तस्स सूरिणो दिति । तं तं न करइ जडो, जमप्पणो भाइतं कुणइ॥५००॥ तह खिंसईअ गुरुणो, जहा इमं किं सुदुक्कर मज्झ। जं सूरिणा विइन्नं, पच्छित्तं पावसोहिकरं ॥१॥ तिव्वं तव सयंचिअ, करेइ मासाइ जाव छम्मासे । किं इत्तो अन्महि, गुरुणो दाहंति मज्झ तवं ॥२॥ इच्चाइ पयंपतो ताहे सो सूरिणा सगच्छाओ। निद्धाडिओ उ हिंडइ, धम्म विमुक्को जहा बाणो॥३॥ पुढवी जलं च जलणं, कजमकजंमि गिन्हयंतस्स । अइकंतो बहुकालो, दुक्करतवचरणनिरयस्स ॥४॥ पव्वजं सच्छंदं, काउंमरिउंच सो तओ सुसढो। सोहम्मे संजाओ, देवो इंदस्स समरिद्धी॥५॥ तत्तो चविउं इह चेव, भरहखित्तंमि सुसढजीवो सो। होऊण वासुदेवो, गमिस्सिही सत्तमि पुढविं॥६॥ तत्तो उववट्टित्ता, हत्थी 388 होऊण मेहुणासत्तो। मरिउं अणंतकाएसु, गच्छिही गोअमा! सुसढो॥७॥अइदुक्करतवचरणं, कुणमाणोविअ १. अनुप ॥३९॥
SR No.600265
Book TitleJain Katha Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorKalyanbodhivijay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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