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________________ 3 ॐ श्रीजैन कथासंग्रहः ।श्री अथ 3 सुसढचरित्रम्। ॥३७॥ वयगहणस्स अजुग्गा, तहेव पच्छित्तदाणस्स ॥ ७० ॥ अह दिक्खिओ स गुरुणा, सुजसिवो गाहिओ दुविहसिक्खं । उज्जुत्तो भत्तिगओ, सुदुक्करं कुणइ तवमेवं ॥ ७१ ॥ निप्पडिकम्मसरीरो, छम्मासं तं तवं च कुणमाणो । अगिलाणो अपमाई विहरइ सो सूरिणा सद्धिं ॥ ७२ ॥ छव्वीसं वासाई, तेरस दिवसाई विहिअपव्वजो। पाओवगमणविहिणा, खविउं कम्मं गओ सिद्धिं ॥७३॥ अह गोअमो पयंपड़, विहिऊणं तारिसं महापावं । अंतगडकेवली कह ? संजाओ नाह ! सुजसिवो॥७४ ॥ भयवं पभणइ वीरो, गोअम! इमिणा महाणुभागेणं। आलोइयं विसुद्धं, कयं च गुरुदिनपच्छित्तं ॥७५॥ अह भणइ गोअमो सो, सुजसिरी सामि! कहणु संपत्ता। तो भयवं वागरई, तमाइ, पुढवीइ संपत्ता॥७६ ॥ केण व कम्मुदएणं, तत्थ गया सा वराइया नाह!। अज्झवसायवसेणं, अइरुद्देणं जिणो कहइ॥ ७७ ॥ आसन्नपसवकाले, गोअम ! एवं विचिंतियं तीए। पचूसे पाडिस्सं गन्भमिणं विविहखारेहिं ।। ७८॥ इय अहट्टमणा, गन्भस्सुवरिमिमा य झायंती। पुत्तं पसवित्तु मया गया इमा छट्टपुढवीए॥ ७९ ॥ सो असुओ जरजंबाल-वेडिओ जायमित्तओ चेव। गहिउंसुणएण कुलाल-चक्कउवरिमि अह मुक्को॥८॥जा भक्खिउमारद्धो, संपत्तो ताव तत्थ कुंभारो । चित्तुं निअघरणीए, तेणं सो अप्पिओ बालो॥ ८१॥ इअ पभणंतो भजं, अम्हं पुत्तो पिए ! अपुत्ताणं । कुलदेवयाइ तुहाइ अप्पिओ भत्तिकलिआणं॥ ८२॥ तो जम्मणाइ सव्वं, वित्थरओ काउमुस्सवं तस्स। ॥३७॥
SR No.600265
Book TitleJain Katha Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorKalyanbodhivijay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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