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________________ श्रीजैन कथासंग्रहः श्री अब सुसच्चरित्रम् । ॥३६॥ % दट्टणं तेणं, चिंतियमुल्लसियसुद्धभावेणं। मग्गामि पावसुद्धि, मुणिवरमेयं विगयमोहं ॥५०॥ नमिऊणं उवविटुं, पणइणिसहियं तु सुजसिवविष्पं । नाऊण ताण चित्तं, सूरी एवं पयंपेइ॥ ५८॥ भो भद्द ! इह जिआणं, संसारे विविहकम्मवसगाणं । तं नत्थि किंपि पावं, पुन्नं वा जं न संभवइ ॥ ५९॥ अह कहवि कम्मवसगाण, पाणिणं जइ हविज इह खलिअं। ता सोही कायव्वा, सम्मं धीरेहिं गुरुमूले ॥६०॥पक्खालिजइ चलणे जलेण जह सिग्यमसुइमलमलिणो। तह पावपंकमलिणो, जीवो आलोयणजलेण ॥ ६१ ॥ जो अजिओ जिएणं, पावमलो रागदोसवसगेण । सो संजमजुअतवसा, सुज्झइ जह कणगमनलेण ॥६२ ।। ता भो भयलजा-गारवाइ मुत्तूण सव्वमवि पावं। पयडसु सल्लं विजुव्व जेण तुह झत्ति उद्धरिमो॥६३॥ तो तेण परमसद्धा-गएण सव्वंपि पयडियं गुरुणो। तं जं चिंतिअमेअं, बालं मारित्तु भक्खेमि ॥ ६४ ॥ विकिस्सं वा पिसिअं, इमीई एसा उ विक्किया जह व । जह लोआणं कना, हरिआ जह परिणीआ एसा॥६५॥ अन्नं पिअजं पावं, विहिअंबालत्तणाउ तं तेण । कहियं गुरुणो सव्वं, बालेण व उजुभावेण ॥ ६६ ॥ तो नाणाइसएणं, गुरुर्हि नाऊण तस्स संवेगं। दिन्नं पायच्छित्तं, जह भणियं खीणरागेहिं॥६७॥ सो आढत्तो काउं, तवचरणं जंगुरूहिं निटिं। गुरुभत्तिजुओ मइमं, मन्नंतो सुद्धमप्पाणं॥६८॥ तस्स समत्तीइ पुणो, सुजसिवो भणइ गुरुअसंवेगो। जह भयवं मह दिक्खं, देसु सभजस्स पसिऊणं॥६९॥ तत्तो गुरुणा भणिअं, संपइ जंगुम्विणित्ति तुह भजा। ॥३६॥
SR No.600265
Book TitleJain Katha Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorKalyanbodhivijay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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