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श्रीजैन कथासंग्रहः
श्री अथ सुसढचरित्रम्।
॥२१॥
साहूणं दिन्नसुहो, अदिन्नसुक्खो गिहत्थाणं ॥ ५७ ॥ उद्धियदंडो साहू, अचिरेण उवेइ सासयं ठाणं । सुधिय अणुधियदंडो, संसारपवट्टओ होइ॥५८॥ दंडसुलहमि लोए, मा अमइ कुणसुदंडिओमित्ति। एस दुलहो हु दंडो भवदंडनिवारणोजीव!॥५९॥ तुमए चेव कयमिणं, न सुद्धकारिस्स दिजए दंडो। इह मुक्को विनमुच्चसि, परत्थ नियपावकम्मेहिं॥६०॥ता एवं नाऊणं, आलोअसु वच्छे! बालभावाओ। इच्छामुत्ति भणित्ता, पडिवजइ सा वि गुरुवयणं ॥६१॥ अह सा वंदित्तु गुरुं, सव्वं दप्याइएहि जं रइयं । आलोअइ अइयारं, दिट्ठिविआरं पमुत्तूणं॥१२॥ ताहे गुरुणा भणियं, विस्सरियं वत्थि किं तुहं तइआ। अत्थाणत्थो जमहं, सुइरं निज्झाइओ तुमए॥६३॥ तीए उत्तं न तया मे सरागदिट्ठीइपेक्खिआ तुझे। सीलपरिक्खणहेडं, सरागमवलोइया किंतु॥ ६४॥ आलोयव्वं किमित्व-अहवा वि हवउ एयंपि। आलोइयंति को मह-दोसो सव्वत्थ सुद्धाए॥६५॥ एवं निसामिऊणं, गुरुसंवेगागएण मुणिवइणा । तत्तो चिंतियमेयं, धिरत्थु इत्थीसहावस्स ॥६६॥ पिच्छह जमित्तिएण वि कालेणेयाइ संजमजुयाए। तिव्वतवोनिरयाइवि अहह न चत्ता इमा माया॥६७ ॥गलिओ गुरूवएसो, नटुं सुत्तं इमीइ तह पुन्नं । समखल्लएहिं मिलिअं, परिचत्तं सागपत्तेहिं ॥ ६८ ॥ गुरुणा तहावि भणिआ, पुणोवि करुणापवनमणसा सा। लक्खणनामा अजा, रायसुआ किं तए न सुआ? ॥ ६९॥ मणचिंतियमइयारं, अकहित्ता गारवेणगुरुपुरओ। जातिव्व तवजुआवि हु, भमिआसंसारकंतारे॥७॥भयवं!
॥२१॥