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श्रीजैन कथासंग्रहः
श्री अब
SRO सुसत्चरित्रम्।
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बइअ६ संकिअभय ८ प्पओसाय ९ वीमंसा १०॥१८॥ वग्गणमाई दप्पो, इह कंदप्पो, अभन्नइ पमाओ । विस्सरियमणाभोगो, सहसकारो अं कम्हत्ति ॥ १९ ॥ छुहतन्हवाहित्थो, जं सेवइ आउरा भवे एसा। दव्वाइअ लंभे पुण, चउब्विहा आवई होइ ॥ २० ॥ संकियमाहाकम्माइ, संकिए सीहमाइणं च भयं । कोहाईड पओसो, वीमंसा सेसमाईणं॥ २१॥ (दारं) आकंपइत्ता अणुमाणइत्ता जं दिटुं बायरं च सुहुमं वा। छन्नं सद्दाउलयं, बहुजणअव्वत्ततस्सेवी॥ २२॥ इय पडिसेवगदोसा, आकंपिअ तत्थ भत्तमाईहिं। गुरुअवराहं लहुआणुमाणओ तहय आलोए ॥ २३ ॥ जं दिळंति परेणं, आलोअइ बायरंति न उ सुहमं । अह सुहमं आलोअइ, विस्संभत्थं न उण थूलं ॥ २४ ॥ छन्नं अव्वत्तसरं, सद्दाउलयंति तुरियसद्देणं । तं चेव य पच्छित्तं, आलोअइ बहुजणाण पुरो॥ २५ ॥ अव्वत्तअगीअत्थस्स, तं च आसेवओ अ तस्सेवी। (दारं) । इत्तो दस आलोअग-गुणा इमे हुंति नायव्वा॥ २६॥जाइ कुल विणय उवसमइंदियजय नाणदंसणसमग्गा। अणणुत्तावि अमाई चरणजुआलोअगा भणिया॥ २७ ॥ जाइजुओ पाएणं, न कुणइ असुहं कयं तु आलोए। कुलसंपन्नो सम्मं, पच्छित्तं वहइ गुरुदिनं ॥ २८ ॥ नाणी किच्चाकिच्चं, जाणइ सद्दहइ दंसणी सोहिं । चरणी तं पडिवजइ, सेसपया हुँति पयडत्था॥२९॥ (दारं) आयारवं १माहारवं २ ववहारु ३ ब्वीडए पकुव्वी अ। अपरिस्सावी ६ विजवं ७ अवायदंसी ८ गुरू भणिओ॥ नाणायाराइजुओ आयारव सीसकहिअअवराहं । धारतो आहारव
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