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________________ श्रीजैन कथासंग्रहः । श्री अथ सुसढचरित्रम्। ॥१३॥ खिप्पं आणाविया रसव्वईओ। अह उवविट्ठो राया, भुत्तुं सकुमारपरिवारो॥५३॥ भूवइणा भणियमिणं, कवलं चित्तुण दाहिणकरेण । भण इन्हेिं कुमर ! तुमं, चक्खुकुसीलस्स किं नामं ॥ ५४॥ जइ कहमवि दिव्ववसा, विग्धं मह हुज भोअणे सहसा। तो दिवपच्चओखलु, सपरियणो पव्वइस्सामि॥५५॥ कुमरेण तओ भणियं, चक्खुकुसीलस्स तस्स अहमस्स। 'रुप्पित्ति सहकरणं, अहलीकयमणुयजम्मस्स ॥५६॥ तो पवयणदेवीए मा हुजा एस अलीयवाइत्ति । मणकजसाहणीए, आणीयं परबलं झत्ति ॥ ५७॥ इत्थंतरंमि गोयम! वेढिजंतीइ रायहाणीए । संखुद्धो नरनाहो, नमिउं कुमरं लहुं नट्ठो॥५८॥ कुमरेण चिंतियमिमं, सामिविहीणस्स मंडलसस्सेव । नासेउं नहु जुत्तं, मो वा महजुज्झिउं इन्हेिं ॥५९॥ पच्चक्खायं च मए, जेणं पाणाइवायपावस्स । दिद्वं दिट्ठिकुसीलस्स ? नामग्गहणे वि फलमेव ॥६०॥ अन्नं च करेमिन्हेिं, सागारं काउमणसणं झत्ति। नियसीलस्स परिक्खं, तिगरणसुद्धस्स जं भणियं ॥ ६१॥ निम्मलसीलधराणं, नराण अमयं व होइ विसमविसं। पजलिरजलणजालावली वि किल होइ जलतुल्ला ॥६२॥ कुमरेण तओ भणियं, जइहंमणसा वि कहमवि कुसीलो। ता सिन्ना हणउ ममं, अह नेवं हवउबंधुत्तं ॥६३ ॥ इय वुत्तूणं एसो, नमो जिणाणंति भणिय जा चलिओ। ता दुटुं परजोहा, जंपंति स एस नरनाहो॥६४॥ कुमरो जंपइ एवं, एसोऽहं नरवई लहुं एह । पहरह मह देहंमी, जइ विरिअं अत्थि तुम्हाणं ॥ ६५ ॥ तो उग्गीरियखग्गा संपत्ता ते तहिं * ॥१३॥
SR No.600265
Book TitleJain Katha Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorKalyanbodhivijay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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