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श्रीजैन
कथासंग्रहः
श्री अथ 8 सुसवचरित्रम्।
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देसिअंसुदुक्खे वि। पजलियजलणजाला-वलीइ जं खिप्पए अप्या॥१४॥ जड़ जलणपवेसेणं, खणेण सग्गो हविज मुक्खो वा । तो दाणसीलतव-माई, दुक्करं को करिज चिरं? ॥ १५॥ बहुभवसंचिअपावं, तिब्वेण तवेण संजमजुएणं । डज्झइ झडत्ति पुत्तं ! किसाणुणा कट्ठनियरं व ॥ १६ ॥ ता कुणसु तवच्चरणं, पसंतचित्ता तुमं ससत्तीए । छट्ठट्ठमदसमदुवालसाइमासद्धमासखमणाई ॥ १७ ॥ अन्नो अ तवो भणिओ, जिणेहिं अइदुक्करो इमो वच्छे ! । गुणरयणवच्छरो१ तह, आयंबिलवद्धमाणोर अ॥ १८ ॥ एगावलि३ रयणावलि४-कणगावलि५ मुत्तिआवलीओ६ अ। सेणि ७ घण ८ पयर ९ वग्गा १० पडिमा ११ जव १२ वयरमज्झा य ॥१९॥ लहु १४ महसिंहनिकीलिअ १५, भद्द १६ महाभद्द १७ सव्वओ भद्दा १८ तह सव्वभद्द पडिमा १९, पडिमा २० तह सत्तसत्तमिआ॥ २०॥ अट्ठमि २१ नवनवमी २३ तवोवहाणं जिणुत्तमिच्चाई। पंचमिकल्लाणगदिक्ख-नाणनिव्वाणसन्नो अ॥ २१ ॥ इंदियजयमाईओ, अन्नोवि हु बहुविहो समाइन्नो। सव्वोवि तवो कीरइ, कम्मक्खयट्ठा जओ भणियं ॥ २२॥ नो इह लोगट्ठाए, न परलोगट्ठयाइ कायव्वो। नो। कित्तिमाइ अट्ठा, किंतु तवो निजरट्ठाए ॥ २३ ॥ एवं विहिविहिएणं, तवेण पाविजए धुवं मुक्खो। नरसुरसुहमणुसंगिअ-मिह वच्छे ! किसिपलालं व ॥ २४॥ मुत्तुमसग्गहमेयं, पुत्त! तं कुणसु सावर्ग धम्म। इय भणिऊणं रना, समप्पिआ कंचुइस्स इमा॥ २५॥ तो रुप्पी रुप्पुजल-चित्ता पूअइ जिणे तिसंझंपि ।
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