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श्रीजैन कथासंग्रहः
श्री अथ सुसढचरित्रम्।
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किं कयं तीइ कन्नगाइ पुरा । कम्मं खु जायमित्ताइ, जेण जणणी मया झत्ति॥७॥ भणइ पहु सुणसु तुमं, . घरणिपइट्ठियपुरंमि इह भरहे । अरिमहणुत्ति राया, अरिवारनिवारणो आसी॥ ८॥ सुजसिरीए जीवो, पच्छिमजम्मंमि तस्स नरवइणो। आसी पिआ नरकंता, वररूवगुणेहिं संपुना ॥९॥ दटुं कयाइ तीए, सविक्किदेवीइ जायमित्तसुअं। गुरुमच्छरभरियाए, पावाए चिंतियं एवं ॥१०॥जड़ मरइ इमस्स लहुं, जणणी बालस्स तो मह सुअस्स। सयलं रजं भवइ, भोगाय जहिच्छिया मज्झं ॥११॥ इय दुचिंतियवसओ, असुहं कम्मं समजिउं एसा । काले मरिउं तिक्खं, दुक्खं अणुभविय भूरि भवे ॥१२॥ संजाया सुज्जसिरी, गोयम ! तक्कम्मसेसएण पुणो। मणचिंतियमित्तेण वि, इमीइ माया मया इहयं ॥१३॥जे पुण जीवा जीवे, वहंति सययं मुसंच भासंति। गिर्हति अदत्तं पिहु, आरंभपरिग्गहेसु रया॥१४॥ महुमज्जमंसनिसिभोयणाइ निरया उगोअमा !जे उ! अक्खाइउंन सक्का तेसिं दुक्खाई निख्रिलाई॥१५॥अह सा सुजसिवेणं, अणेगणारीण चाडुनिरएणं। जीवाविया य धूया, कट्टेणं खीरदाईणं ॥ १६ ॥ संजाया सुजसिरी, वखंती जाव अट्ठवारिसिआ। ता बारसवच्छरीओ, दुकालो दारुणो पत्तो ॥ १७ ॥ तंमि य कुलाभिमाणो, नट्ठो सुहिसयणबंधवसिणेहो । परउवयारस्सरणं, धम्मो लजा य दक्खिन्नं ॥१८॥ भक्खाभक्खविसेसो, न गणिजइ तह य जणणिजणओवि ।भुंजइ मायंगगिहे, पिओ वि माया वि चयइ सुअं॥१९॥ अह सुजसिवेण इमं, करालदुक्कालकालकलिएणं
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