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________________ ॥अहम् ॥ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः । ॥श्री प्रेम-भुवनभानु-पद्य-हेमचंद्र सद्गुरुभ्यो नमः ।। । श्री अथ 33 सुसढचरित्रम् । कथासंग्रहः ॥१॥ अथ सुसढ-चरित्रम्। रायगिहे गुणसिलए, समोसढो अन्नया जिणो वीरो। जइणो जयणाधम्मं, परिसामझे परूवेइ ॥१॥ जयणाइ चरे भिक्ख, चिढे आसे सुए व अँजिजा। भासे व जं न बज्झइ, नवपावं झिज्झए बद्धं ॥ २॥ जो पुण जयणारहिओ, सुसढुव्व तवं तवेइ बहुअंपि । सो घोरे संसारे, अणोरपारे भमइ दुहिओ ॥ ३ ।। अह गोयमेण नमिङ, पुट्ठो को एस सामि सुसढत्ति ? । तो भयवं सुसढकहं, सवित्थरं कहिउमाढत्तो॥ ४॥ आसि इहवंतिविसए, खेडे संबुक्कनामए विप्पो। सुजसिवो निम्मेरो, जम्मदरिदो निरणुकंपो॥५॥ तन्भजा जनजूसा, तीए जाओ अ अन्नया गम्भो। सा सुजसिरिंधूअं, पसवित्ता मरणमणुपत्ता॥ ६॥ अह भणइ गोअमो सामि!, ॥१॥
SR No.600265
Book TitleJain Katha Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorKalyanbodhivijay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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