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प्रकाशक :राजाबहादुर ला
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
. जाव .. जीवाए, जइणं. . एतो. . उवसगाओ.... मुच्चिस्सामि; : तोमेव : कप्पा..
परितत्ते, अहणं एत्तो उवसग्गओ नमुच्चिस्सामि तोते तहा पञ्चक्खाइ, तिकटु.. सागारिय पडिमं पडिवज्जइ ॥ ३१ ॥ तत्तेणं से मोग्गपाणी. जक्खे तं पलसहस्स निप्पणं अयोमयं मोम्गरं उल्लालेमाणे २ जेणेव सुदंसणे समणोवासए लेणेव उवाग-... च्छइ २ ता, नो चेवणं संचाएति, सुदंसणे समणोवासए तेअसासमडि पडित्तए.. ॥ ३२ ॥ तएणं से मोरगरपाणीजक्खे सुदंसण समावासयं सवओ समंता. परि
घोलेमाणे २ जाहिं नो संचाएति सुदंसणे समणो वासयं तेयसांसमभिपडितत्ते, सिध्यात्व दर्शन शल्यका प्रत्याख्यान करता हुं जावजीव पर्यन्त यदि इस उपसर्ग में मुक्त होवूमो मुझे कल्पे । इन प्रत्याख्यानो को पारना और जो इस उपसर्ग से मुक्त नहीं होQतो यह किये तैसेंही प्रत्याख्यान- मेरेरहो.. ऐसा कर सागारी अनशनः अङ्गीकार किया ॥ ३१ ॥ तय वह मोगार पानी यक्ष वह हजारपल जितने . भारबाला लोहेका मुद्गस उलालताहुवा २ जहां सुदर्शन श्रमणोपासक था तहां आया, आकर सुदर्शन भ्रमणो पासक को उपपर्ण करने शरीर को दुःख उत्पन्न करने समर्थ नहीं हुवा ॥ ३२ ॥ तब वह मोगार पानी यक्ष सुदर्शन श्रावक के चारों तरफ फिरने लगा, फिरता हुवा भी जब सुदर्शन श्रावकका तेज सहन करने, समर्थ नहीं हुवा तब सुदर्शन. शेर के सन्मुख से पीछे आकर खडा हुवा, सुदर्शन श्रमणो पासक को
लामुखद
अर्थ
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