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________________ 448+ अष्टांग-अंतगड दर्शन सूत्र +4+ भित्ते अचलिए असंभमेणे वत्येणं भूमि पमज्जति २ ता करयल जाव एवं वयासी नमोत्थुणं अरिहंताणं जात्र संपेत्ताणं, णमोत्थुणं समणस्स भगवओ जाव संपाविओकामस्स, पुव्विणिं भंते ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ थूलए पाणाइ वाए पच्चक्खर जात्र जीवाए, थूलए मोसाइवाए, थूलए अदिन्नादाणे, सदारा संतोसेकर जाव जीत्राए, इच्छा परिमाणकत्ते जावजीवाए, सेतं इदार्णिपि तस्सेव अंतिए स पाणा इवायं पञ्चक्खामि जावजीवाए मुसाइवायं अदत्तादाणं- मेहुणंपरिग्गहं पञ्चखामि जावजीवाए सव्वं कोहं जाव मिच्छादसणसह पञ्चक्रखामि Jain Education International · कर बैठा डावेढीचन खडारख उसपर हाथ जोड़े हुबे रखकर यों बोला- नमस्कार होवो अर्हन्त मगन्तको यागत् मुक्ति पधारे उन को || नमस्कार होवो श्रवण भगवंत श्री महावीर स्वावीजी मोक्षके अभिलाषी हैं को, अहो भगवन् ! पहिले भी मैने श्रमण भगवंत श्री मरावीर स्वामीजी के पास, स्थूल-बडे प्राणातिपात का जावज्जीव प्रत्याख्यात किया था, ऐसे ही स्थूल मृपाबाद का, स्थूल जदचादान का, स्वस्त्री संतोष कर उपासन्त मैथुन का और धन की इच्छा का इन का जावजीरू का प्रमान किया था, वही इस वक्त भी उन के ही पास मर्वथा प्राणातीपात का प्रत्याख्यान करता हूं जावज्जीव पर्यन्न, सर्वथा मृषावाद का मदचादान का मैथुन- परिग्रह का मत्वाख्यान करता हूं चावज्जीव पर्यन्त, सर्वथा प्रकारे क्रोध का यावत् । - For Personal & Private Use Only 43*+ षष्टम वर्गका तृतीय अध्ययन -44+ ८३ www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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