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________________ +2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी : 28 जाव सरीरे सयातो गिहातो पहिनिक्खमई २ ता पायविहार चारेणं रायगिह नयरं । मझं मझेणं निगच्छइ २ ता मोग्गरपाणीरस जक्खायणस्स अदूर सामंतेणं जेणेव गुणसिल चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारत्य गमणाए ॥ २९॥ तत्तेणं से मोग्गरपाणीजक्खे सुदंसण समणोवासएणं अदूरेसामंत्तेणं वितिवएमाणे पासइ २ त्ता आसुरत्ते तंपलसहस्त निप्पनं अयओमय मोगारं उलालेमाणे २ जेणेव सुंदसण समणासए तेणव पहारस्थ गमणाए ॥ ३०॥ तत्तणं से मुदंसणे समणावासए मोग्गपाणी जक्ख एजमाणे पासइ २त्ता अभिए अतत्थे अणुविग्ग अक्खू. शुद्ध वस्त्र पहने यावत् शरीर को विभूषित कर अपने घर से निकला,पांवों से चलता दुवा राजगृही नगरी के मध्य मध्य में होकर मांगर पानी यक्षके यक्षालय के पास हो जहाँ गुनसिला चैत्य है, तहाँ श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी उस रास्ते में गमन करने लगा ॥ २९ ॥ नत्र मोगार पानी यक्षने सुदर्शन सेठ को, अपने नजीक हो जाता हुवा देखा, देखकर अमरक्त हुवा, उस हजार पल प्रमान वजनवाले लोहे के मुद्रल को उछालत्ता वा २ जहां मुदर्शन श्रारक रहा था उस के सन्मुख आने लगा ॥३०॥ तब श्रावकने मोगारपानी यक्षको आताभादेखा, देखकर डरपाया नहीं, भासपाया नहीं उदेगपाया नहीं, लोमित वा नहीं, चलित वा नहीं, मगा नहीं, घबराया नहीं, परन्तु बनकर वहां की भूमी का पूंजी (शारी) पंचा: .भकाशक-रामाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालामसादनी 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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