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अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र 8.48
ताहे. सुदंसणस्स समोवासयस्स पुरतो सपक्खि सपडिदिसं टिच्चा, समोवासयं अणिमिस्साए दिट्ठीए सुचिरं निरक्खेत्ते २ अज्जुणमालागारस्स सरीरं विप्पजहइ २ त्ता संपलसहस्स निप्पन्नं आउमयं मोग्गरं निगाहिय, जामेवदिसिं पाउब्भए तामेवदिसिं पडिगए ॥ ३३ ॥ तएणं से अज्जुणमालागारे मोग्गर पाणीणा जक्खेणं विप्पमुक्कसमाणो धसति धरणीतलसि सव्वंगेहिं संनिवंडए ॥ ३४ ॥ तएणं से
सुदंसणे समणोवासए निरुवसग्गमिति तिकटु पडिमा पारेति ॥ ३५॥ तएणं से __ अज्जुणमालागारे तत्तो मुहुत्तेतरेणं आसत्थेसमाणे उदिति २ सुदंसणस्स
समणोवासए एवं वयासी-तुब्भणं देवाणुप्पिए के ? किहिंवा संपत्थिई? ॥३६॥ तत्तेणं । मेषोन्मेष देखता हुवा, बहुत काल तक देखता रहा देखता रहता हुवा अर्जुन माली के शरीर को छोडकर उस हजार पलभार के निष्पन्न लोहके मुद्गल को लेकर जिस दिशा से आया था उसदिशा ( देवालय में ) पीछा चलेगया ॥ ३३ ॥ तब अर्जुन माली मोगर पानी यक्षसे विमुक्त हुवे धसकाकर जमीनपर ममि से , पडा ॥ ३४ ॥ तब सुदर्शन श्रावकने उपसर्ग निवारन हुवा जाना, उस सागरीक प्रतिज्ञा के प्रत्याख्यानपारे
३५ ।। तब अर्जुन माली मुहुर्त के बाद विश्राम पाय हुवा उठा, उठकर जहां सुदर्शन श्रावक था तहां १० आकर यों कहने लगा-हे देवानुप्रिया ? तुम काने हो ? कहां जाते हो ? ॥ ३६ ॥ त . सुदर्शन शठ।
8488+ षष्टम-चर्गका नृतीय अध्ययन
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