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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिनी +
गारस्स रायगिहस्स बहिया एत्थणं महं एगे पुफारामहोत्था, किण्हहे. जाव निकुरंबभूए..... दसवन्नं कुसुम कुममइ, पासादिए दरिसणीजे अभिरुवे पडिरुवे ॥ ४ ॥ तस्सणं पुप्फारामस्स अदूरसामंते एत्थणं अज्जुणयसे मालागारस्स अजय पजयागत, अणेग- . कुलपुरिसे परंपरागते मोग्गरेपाणी जक्खस्स जक्खायणहोस्था, पोराणेहिवे. सच्चे जहा पुण्णभद्दे ॥ ५॥ तत्थणं मोग्गरपाणीस्स पडिमा एगं. महं पलस्सहस्सणिप्पणं अउमयं... १
मोयरं महायांचटुंति॥६॥ तस्स अज्जुणमालागारे. बालाप्पमिति चेव मोग्गारपानीयक्ख .. अयावन्त यावत् निरंकुरम्ब (सधन) भूत था वह पांच वर्ण के फूलोंकर सदैव फुला हुवा था वह चित्तको प्रसन्न करनेवाला, देखने योग्य, अभिरूप प्रतिरूप था ॥ ४ ॥ उसपुष्पाराम-बगीचे में मोगर पानी नामक यक्षका यक्षायतन मंदिरा था, वह अर्जुनमाली के दादे परदादे अनेक पीढीयों से परम्परा से मनिता पूराना था. उस में रहा देव सत्य वादी यात जमा पूर्ण भद्र यक्षका उबवाइ सूत्रमें कथन चला है ऐसा इसका भी यहां जानना ॥ ५ ॥ तहां उस मोगरपानी यक्ष की प्रतिमा एक बड़ा हमारपल जितने बजनवाला + लोहेका मुद्गल ग्रहण करके रही थी ॥ ६ ॥ उस मुद्गल पानी यक्षका अर्जुनमाली बचपनसे ही भक्त था,
+ पांच रति का एक मासा , सोले मासा का एक सोनैया, ( अर्थात् तीन टांक का एक सोनेया) चार सोनैया का एक पल, ऐसे एक हजार पल का वह मुद्गल जानना..
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहाय की ज्वालाप्रसादजी
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