SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 48 अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र - गुणरयणं तवोकम्मं सोलस्सवासाइं परियाओ तहेव विउले सिद्धे ॥ ५ ॥ छट्वग्गरस पढमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ६ ॥ १ ॥ दोच्चस्स उक्खवओ, विकम्मएणं एवंचव ॥ जाव विउल सिहे ॥ वित्तिय अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ६ ॥ २ ॥ तच्चस्स उक्खेवउ- तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गणसिलाए नेइए, से गिएराया, चिलणादेवी, ॥ १ ॥ तत्थणं रायगिहे णयरे 'अज्जुणए णामं मालागार परिवसइ, अड्डे जाव अपरिभूए ॥ २ ॥ तस्सणं अज्जुणयश्स, मालागाररस बंधुमतिणामं भारिया होत्था, सुकुमाला जावसुरुवा ॥ ३ ॥ तस्सणं अज्जुणयस्स मालासोलह वर्ष दीक्षापाली तैसे ही विपुलगिरी पर्वतपर सिद्ध हुवे ॥ षष्टम वर्ग का प्रथम अध्ययन ६॥१॥ दूसरा अध्ययन-विक्रम गाथापति का जिस का सब कथन महिले अध्याय में कहें मकाइ गाथापति जैसा जानना. यावत् विपुलगिरीपर सिद्ध हुवा । छठा वर्गका दूसरा अध्याय समाप्त॥२ तीसरा अध्याय का उक्षेप-उसना उस समए में राजग्रही नामा नमरी गुणसिला नामा चैत्य, श्रीणक ? नामे राना, चिल्लणा नामे रानी ॥ १॥ तहां राजगृही नगरी में अर्जुननामे माली रहता था, वह ऋद्धिन्त यावत् अपराभवित था ॥२|| उस अर्जुन माली के वन्धुमति नाम की भारिया थी वह सुकुमाल यावत् सुरूप थी॥३॥उस अरजुन मालीका उस राजा गृहि नगरीके बाहिर यहां एक बडा पुष्पों का बगीचा था वह कृष्ण 48488+ षष्टम-वर्गका तृतीय अध्ययन Bet - For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy