________________
*84-88
488+ अष्टमांग-अंतगड दशांग मूष 4882
भत्तेयाविहोत्था, कल्लाकालि वत्थिय पडिलए गिण्हइ २ ता, राएगिहाओणयरिओ . पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणव पुप्फारामे तेणेव उवागच्छइ २ ता पुप्फचयं करेइ२त्ता अग्गाइं वराई. पुप्फाई गहाय जेणेव मोग्गरपाणीस्स जक्खायतणेतेणेव उवागग्छइ २त्ता मोग्गरपाणीस्स यक्खस्स महरियं पुष्फचणं करेइ २त्ता जाणूपाए पडिए षणामं करेइ रचा तओ पन्छारायमगंसि वित्तिकप्पेमाणे विहरइ ॥७॥ तत्थणं रायगिहे गगरे ललिया
एणामं गोट्ठीपरिवस्सइ, अड्डा जाव अपरिभूया, जंकय सुकययाविहे. होत्था ॥ ८ ॥ सदैव वक्तोवक्त बांस की छाव ग्रहण करके राजगृही नगर से निकले, निकल कर जहां पुष्पाराम तहां माता, आकर पुष्पाचरन-फूलों को एकत्र करता, करके अगर वरास-कपूर फूल ग्रहण कर मोबर पानी यम का यक्षायतन या, तहां आता, तहां आकर मोगर पानी यक्ष का मम अर्थवाला पुष्पार्चन करता, करके घुटने जमीन को लगाकर पांव में पडता प्रणाम करता, प्रणाम करके फिर राज्य मार्ग में उन पुष्फादि को बेचकर अपनी बृति-आजीविका करता था ॥७॥ तहां राजगृही नगर में ललितादिनाम के छ गोठिले (मित्र ) पुरुष रहते थे, वे ऋद्धिवन्त थे यावर अन्य से अपराभावित थे, उन को किसी का 70 भी डर नहीं था. शुभाशुभ कार्य स्वेच्छा प्रमाने करते सदैव क्रीडा में रक्त हुवे विचरते थे ॥८॥ उस राजा
rannnnnn
षष्टम-वर्गका तृतीय अध्ययन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org