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अर्थ
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सव्वावयणं वासुदेवा पुन्वभवे नियाणकडा से तेणं अटुणं कण्हा एवं बुच्चइ एवं एवंभू जाव पव्त्रइस्सति ॥ १६ ॥ तत्तेणं कण्हवासुदेवं अरहं अरिनेमी एवं वयासी - अहणं भंते ! इओ कालमासे कालंकिच्चा कहिं उवजिस्सामि ? ॥ १७ ॥ ततेणं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हवासुदेवं एवं वयासी एवं खलु कण्ह ! तुमं वारवतिए यरिए सुरिग्गी दीवाय कोविनिट्ठाए अम्मापियरो णियग्गवि पहुणे रामेणं बलदेवेणं सद्धिं दाहिणे बेयोलियभिमूहे जुंहिट्ठल पामोक्खाणं पंचण्ह पंडवाण नहोता है और नहोवेगा कि वासुदेव दीक्षाले ? || कृष्णदि ! अरहन्त अरिष्ट नेमीनाथ कृष्ण वासुदेव से ऐसा बोल-यों निश्चय हे कृष्ण ! सब ही वासुदेव पूर्व भव में नियाला करते हैं, उस लिभ हे कृष्ण ! ऐसा कहाकि --- वासुदेव नतो दीक्षाली है नेलेत हैं और नलेसवेगे || १६ || तब कृष्ण वासुदेव अर्हन्त अरिष्ट नेमीनाथमे ऐसा कहा अहो भगवान ! में यहांसे कालके अवसर काल करके कहाँ जानूंगा ? ॥ १७ ॥ तत्र अर्हन्त अरिष्टनेमीनाथ कृष्णवासुदेव से ऐसा वोले यों निश्चय है कृष्ण ? तुम द्वारका नगरी अग्निकुमार देवता दीपायन के जीवसे प्रज्वलित होने से मातपिताको लेकरजाते देव के साथ दक्षिण दिशा समुद्र की बेल आवे उधर युधिष्टर प्रमुख पांच पंडवों पास पांडुमथुरा को
उन का मृत्यु हुये राम पांडुराजा के बुत्रों के
{ जाते रास्ते में कोसंबीवन में निग्रोध (बड) के वृक्ष के नीचे पृथ्वीसिला पटपर पितांबर से अच्छादित
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* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी *
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