SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र अर्थ अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र +4 परिभाएत्ता अरहतो. अरिट्ठनेमस्त अंतियंमुडे जात्र पव्वइया ॥ १२ ॥ अहणं अधणे अकय पुणे रज्जेय जाव अंतेउरिय माणुस्सएसुय कामभोगेसु मुच्छित्ते ४ नोसंचाएमी, अरहतो अरिट्ठनेमी जाव पव्वइत्तवे ॥ १३॥ कण्हाति अरह अरिट्ठनेमी कण्हवासुदेवं एवं बयासी-से गूणं कण्हे! अयं अज्झत्थिए जाव समुप्पणे- धनेते जाय पइए सेणूणं कण्हा ! अट्ठेसमट्ठे ? हंता अस्थि || १४ || तंनो खलुकण्हा एवं भूयंवाभवता भविस्सइबा जणंवासुदेवा चइत्ताहिरणं जाव पव्वइसति ॥ १५ ॥ से केणट्टेणं अंत ! एवं बुच्चइ न एवं भूयं जाव पव्वइरसई ? कण्हति अरहा अरिट्ठनेमी कण्हवासुदेवं एवं वयासी- एवं खलु कण्हा ! नेमीनाथ भगवान के पास दीक्षा धारन की ||१२|| मैं अध्यन्य हूं अकृत अपुण्य हूं यावत् अन्तपुर में मनुष्य सम्बन्धी काम भोग में हो रही हुं, यावत् गृद्ध बनाहु इस से अर्हन्त अरिष्ट नेमीनाथ भगवान के { पास यावत् दीक्षालेने समर्थ नहीं हूँ || १३ || कृष्ण ! अन्त अरिष्ट नेमीनाथ भगवान कृष्ण मामुदेव से ऐसा बोले- हे कृष्ण ! तेरे को इस प्रकार अध्यवसाय यावत् उत्पन्न हुवे धन्य है जाली आदि कुमार को यावत् जिनोंने दीक्षा धारन की ? कृष्ण बोले- हां भगवान ! सस है, ऐसा विचार मुझे हुवा ॥ १४ ॥ ई हे कृष्ण ! निश्चय ऐसा हुवा नहीं होता, भी नहीं, और होगा भी वही कि कभी वासुदेव हिरन्यादि का त्यागकर दीक्षा ग्रहण करे || १५ || अहो भगवान ! वह किस लिये ऐसा कहा कि ऐसा न हुवा Jain Education International For Personal & Private Use Only पंचम वर्गका प्रथम अध्ययन 3 www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy