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________________ अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र 488 कण्णातो, पण्णसउदातो, चउद्दस्स पुव्वाई आहिजति,वीसंवासाई परियाई पाउणित्ता, सेसं तंव जाव सेतुजय सिद्धा ॥ ४ ॥ निक्खवओ-एवं दुमेहवी, कूवएवि, तिण्णिवि बलदेवे धारिणीसूया ॥ ५ ॥ दारुंएवी एवंचेव, णवरं वासुदेव धारिणीसूए ॥ ६ ॥ एवं अणाहिट्ठावि वासुदेव धारिणीसुते तहेव ॥ ७ ॥ एवं खलु जंबु ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमरस अंगस्स अंतगड दसाणं तच्चस वगस्स तेरस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ॥ इति तच्चवग्गस्स तेरे अज्झयणा सम्मत्त॥९॥१३॥ तच्चवगो सम्मत्तो ॥३॥ सब कथन गौतम कुमार जैसा, जिस में इतना विशेष-सुमुख कुमार नामदिया, पांच सो कन्यापरनाइ, पांच सो दात दी, चौदह पूर्व का ज्ञान पढे, वीस वर्ष दीक्षा पाली, शेष तैसे ही यावत् शत्रुजय पर सिद्ध हुवे॥४॥ निक्षेप-ऐसे ही दुमुख कुमार भी, कुवेर कुमार भी, तीनों बलदेव और धारणी के पुत्र ॥५॥ दारू कुमार भी ऐसे ही, विशेष में वासुदेव धरणी के पुत्र ॥ ॥ ऐसे अनादृष्टी कुमार भी वासुदेव धारणी के पुत्र तैसे ही ॥ ७ ॥ यों निश्चथ. हे जम्बू ! महावीर स्वामीने अंतगड के तीसरे वर्ग के तेरे अध्याय Ho का यह अर्थ का ॥३॥९-१३ ॥ इति तीसरा वर्ग समाप्तम् ॥३॥ का ९-१३ अध्ययन 48-800 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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