SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र 4 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ॥ चतुर्थ वर्ग ॥ जतिनं भंते ! समणेर्ण जाव संप्पतेणं तच्चरस बग्गस्स तैररंस अज्झयणा पश्नत्ता, उत्थर वग्गरस अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेर्ण कतिअज्झयणा पण्णत्ता ? एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्त्र वग्गस्त दस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा - जालि, मयालि, उवयालि, पुरिससेणेय, वारितेणेय, पज्जुणसेणेय, संवे, अनिरुद्धे, सच्चनेभीय, दढनेमेय ॥ जइण भंते ! समणेणं जाव संपत्तेर्ण चउत्थस्स वग्गस्स इस अभ्झयणा पण्णत्ता, पढमंस्स अज्झयणस्स केअट्ठे पष्णते ॥ एवं खलु जंबू ! यादे अहो भगवान ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी यावत् मुक्तिगये उनोने तीसरे बर्म के तेरे अध्यायन कहे, अंत कृत दशांग के चौथे वर्ग के कितने अध्यायक हे हैं ॥ ७ ॥ यों निश्चय हे जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोने चौथे वर्ग के दश अध्याय कहे, उन के नाम- १ जाली कुमरका, २ मयाली कुमर का ३ उज्वाली कुमर का, ४ पुरिमसेन कुमर का, ५ वारीपेन कुमार का, ६पद्युन कुमारका, ७सांव कुमारका, ६८ अनिरुद्ध कुमार का, १ सत्यनेमी कुमरका और १० दृढनेवी कुमरका | यदि अहो भगवान् श्रमण यावत् मुक्ति (माप्त हुने उनोने चउथे वर्ग के दश अध्याय कहे, तो प्रथम अध्याय का क्या अर्थ कहा ? ॥ यों निश्चय है। जम्बू ! उसकाल उस समय में द्वारका नगरी, इसका कथन प्रथम गोतम कुमर के अध्ययन जैसा यावत् कृष्ण Jain Education International For Personal & Private Use Only प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी # www.jaineniorary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy