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श्री अमोलक ऋषिजी +
अभूक्खावेति २, जेणेव सएगिहे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सयंगेहे अणुपविटे ॥ ९० ॥ एवं खलु जंबु ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अंतगड दसाणं तच्चस्स वग्गस्स अयमट्टे पण्णते ॥ अट्रमं ज्झयणं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ ८ ॥. नवमस्स उबओ--एवं खलु जंबु ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवतीय नयरीए अहा पढमसए जाव विहरति ॥ १ ॥ तत्थणं वारवतिए णयरिए बलदेवे नामं राया होत्था वण्णओ ॥ २ ॥ तस्सणं बलदेवरसरन्नो धारणीनामं देवी होत्था वणओ
॥ ३ ॥ तएणं साधारणी सिह सुमिणे जहा गोयमे, णवरं सुमुहकुमारे, पण्णासं दिया. उप्त भूमी को पानी का सींचन कराया, जहां अपना घर था तहां आये, आकर प्रवेश किया, रहने लगे ॥१०॥ यों निश्चय है जम्बु श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी मोक्ष पधारे उनोंने अंतकृत दशांग का तीसरे वर्ग के आठवे अध्याय का यह अर्थ कहा. इति तीसरा वर्ग का आठवा अध्याय संपूर्ण ॥३॥८॥* नववा अध्याय-यों निश्चय. हे जम्बू ! उस काल उस समय में द्वारका नाम की नगरी थी, और सब अधिकार जैसा प्रथम गौतम कुमार का कहा तैसा सब यहां जानना, यावत् नेमीनाथ भगवान पधारे
विचरने लगे ॥ १॥ उस द्वारका नगरी में बालदेव नाम के राजा थे, वर्णन योग्य ॥ २॥ उन बलदेव ITराजा के धारणी नाम की राणी थी वर्णन् योग्य ॥३॥ तब धारिणी राणीने सिंह का स्वप्न देखा और
*प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालामस
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी
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