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________________ Nagin 2030 करित्तत्ते, एवं संपेहेति २ त्ता दिसा पडिलणं करेत्ति २ त्ता सरममटियं गिण. हइ २ त्ता जणेव गयसुकुमालअगगारे तेणव उवागच्छइ २ त्ता गयसुकुमालस्स अणगाररस मत्थए मट्टियापालिं बंधइ २ ता जालियातो वियगातो फुलिय किमय समाणा खयरंगीरे कभलेणं गिण्हइ २ ता गयमुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्विवित्तिरत्ता भोये तत्थ तसिये ततखिप्पामेव अवकमंत्ति २त्ता जामेवदिसं पाउ भूते तामेवदिसं पडिगत ॥ ६७ ॥ तत्तणं से गयसकुमालस्स अणगाररस सरीरयंसि वेदणा पाउन्भया उज्जला जाव दुरहियासा ॥ ६८ ॥ तत्तेणं तस्स गयसुकुमाल है मुझे मैं गजसुकुमाल कुमार से ( मेरी पुत्रि का ) वैर लवू, एमा विचारा, ऐसा विचार कर चारोंदिशा में अवलोकन कर सरस पानी से भीनी हुइ तलाव के पाल की मट्टी ग्रहण की, ग्रहणकर जहां गजमुकुमाल अनगार था तहां आया, तहां आकर गजमुकमाल अनगार के मस्तकपर मट्टी की पाल बन्धी पाल बाधकर अग्नि से प्रचलित अंगारे कसूड(पास)के फूल समान रक्तवर्ण खरके अंगारे ठीकर ग्रहण किये, ग्रहण कर के गजसुकुमाल अनगार के मस्तकपर स्थापन किये,स्थापन कर डरा,भय भीत हुवा, त्रास पाया, तहां से तत्काल निकलकर जित दिशा से आया था उसदिशा पीछा (घर) गया ॥ ६७ ॥ तब IFगजसुकमाल अन्गारके शरीरमें पहारेदना प्रगट हुई,वह वेदना प्रति ऊपल पावत् सहन करनी अतिकहिनथी । - अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र तृतीय-वर्गका अष्टम अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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