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अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र
णयरीए मझमझेणं अरहतो अरिट्टनेमिस्स पायबंदए निगच्छइमाणो सोमादारियं पासइ २ त्ता सोमाए दारियाए रूवेणय जोवणेणय लवणेणय जाव विम्हए ॥४८॥ तएणं कण्ह वासुदेव कोडुबिय पुरिसे सहावति २ त्ता एवं वयासी-गच्छहणं तब्भे देवाणुप्पिय ! सोमिल महाणजायइत्ता, सोमादारियं गण्ह २ कण्हतेउरांसि पक्खिवह॥ ततेण एसा गजसुकुमालस्स कुमारस्स भारिया भविस्सति, ते कोडुबिय जाव पक्खिवत्ति ।। ४९ ॥ तएणं से कण्ह वासुदेवे वारवतिए णयरीए मझमझेणं निग्गच्छइ २ सा जेणेव सयसंबवणे उजाणे जाव पज्जुवासंति ॥ ५० ॥ तत्तेणं अरहा अरिट्ठ
नेमी कण्हस्स वासुदेवस्स गयसुकुमालस्स तिसेय धम्म कहा ॥ ५१ ॥ कण्हे पडिगते सोमिल ब्राह्मण से सोमालडकीकी याच नाकरो, सोमालडकी ग्रहणकर कुंवारे अन्तेपुर में स्थापन करो, तब फिर यह गजसुकुमाल कुमारके भारियापने होगी॥४८॥उस कुटम्बिक पुरसने उसही प्रकारसे सोमा को कुंवारे अन्तेपुर में स्थापन की ॥ ४९ ॥ तब कृष्णवासुदेव द्वारका नगरी के मध्य मध्य में से है .. निकलकर जहां सहश्रम्ब उध्यान जहाँ अरिष्टनेमी भगवान थे तहां आये यावत् सेवा भक्ति करने लगे ॥ ५० ॥ तब अन्ति अरिष्टनेमी नाथने कृष्ण वासुदेव को गजसुकुमाल को और उस महापरिषद धर्म कथा सुनाई ॥ ५१ ॥ कृष्ण वासुदेव धर्म कथा श्रवण कर पीछे गये ॥ २२॥ तब गजेसुकुमाल कुमार
4348 तृतीय-वर्गका अष्टम अध्ययन 48
डकी
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