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________________ * 888+मांग- अंतगड दशांग सूत्र 4 पिया ! सहोदर कणीयसंभाउयं विहिणं ॥ ३६ ॥ ततेणं हरिणगमेसीदेवा कह वासुदेवं एवं वयासी होहितीणं देवाणुप्पिया । तवदेवलोएचए सहोदरे कणियसभाउ; सेणं उमुक बालभावे जोवणगमणुपत्ते अरहतो अरिनेमिस्स अंतिते मुंडे जाव पव्वइस्सति कण्हवासुदेवं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयासी, जामेवदिसं पाउन्भूया तामेवदिसं पडिगया ॥ ३७ ॥ तत्तेणं से कण्हवासुदेवे पोसहसालातो पडिणिक्खमइ २ ता जेणेव देवतिदेवि तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, देवतिदेवीए पायग्गहणं करेइ २ ता एवं - होहित अमो ! ममसहोदरे कणीयसेभाउत्तिकट्टु देवतीदेवीए इट्ठा हि जात्र देवता आया तब कृष्ण बोले- अहो देवानुप्रिया ! में चहाता हूं मेरे छोटा भाई || ३६ || तब हरिण गमेषीदेव { कृष्ण वासुदेव से यों बोला- हे देवानुप्रिया ! तुमारे देवलोक से चवकर सहोदर छोटा भाइ होवेगा परन्तु वह बाल भाव से मुक्त होकर योवन अवस्था प्राप्त होते अर्हन्त अरिष्टनेभी भगवान के पास मुण्डित होवेगा { यावत् दीक्षालेवेगा, कृष्ण वासुदेव को दो वक्त तीन वक्त यों कहकर, जिस दिशा से आया था उस दिशा | पीछा गया ॥ ३७ ॥ तब कृष्ण वासुदेव पौषध शाला से निकले, निकलकर जहां देवकी देवीथी तहा आये आकर देवकी देवीके पांच ग्रहण किये, पांच ग्रहणकर यों बोला हे माता मेरा सहोद छोटा भाइ होवेगा, Jain Education International For Personal & Private Use Only 44- तृतीय वर्गका अष्टम अध्ययन ३१ www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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