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________________ श्री अमोलक ऋषिजी - अर्थ तेणछाहं २ मासाणं ममअंतिय पायवंदए हवमागच्छसि ॥ तंधण्णआणतन्त! अम्मयानो जाव झियामि ॥ ३५ ॥ तंसे कण्हवासुदेवे देवतिदेवी एवं बयासी-माणं तुम्हे अम्मो ! उहए जार झीयायह ; अहणं तहावतिस्स जहाणं ममसहोदरए कणियस्स भाउए भविस्सातत्ति कटु, देवतिदेवी ताहिं इट्टाहि वगुहिं समासासेत्ति २ त्ता, तत्तो पडिनिक्खमइ २ त्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ २ जहा अभउ णवरं है हरिणगमेसिस्स अट्टमभत्तं पगिण्हत्ति जाव अंजलिकटु एवं बयासी-इज्छामिणं देवा. हे पुत्र ! मैंने एक सरीखे-या तेरे जैसे यावत् सात पुत्र प्रस्रो परंतु निश्चय मैने एक भी वालक का अनुभव लिया नहीं, हे पुत्र ! सू भी.छे २ महीने में मेरे पास पांव वंदन करने आता है, इसलिये धन्य है। उस माता को जो अपने कूक्षी से उत्पन्न हुवे पुत्र को स्तन का दूध पिलाती है यावत् इपलिये मैं चिन्ता ग्रस्त बनी हूँ ॥ ३५॥ तब वे कृष्ण वासदेव देवकीदेवी से इस प्रकार कहने लग-अहो अम्मा ! तुम में चिन्ता मत करो यावत् आर्तध्यान मत ध्यावो. मैं तेरेलिये जिम प्रकार मेरा सहोदर कनिष्ट (छोटा ) भाई , होगा वैसाही करूंगा,ऐसा कहकर देवकी देवीको उस इष्टकारी प्रियकारी शब्दकर सतोषी, संतोषकर वहांसे ईनिकले,निकलकर जहां पौषधशाला, थी वहां आये,आकर जिस प्रकार ज्ञाता मत्रमें कहे प्रमाने अभय कुमारने देवता का आराधन कियाथा उस प्रकार इनने भी हरिणगमेषी देवको अष्टम भक्त(तेला)का तपकर याद करते हुवे रहे. प्रकाशक-सजाबहदुर लाला सुखदेवमहायजी मालाप्रसादजी. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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