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________________ 88488 अष्टमांम अंतमड दशांग सूत्र 824887 कचुयपरिक्खित्तीया, दरित्तबलिय बाहा, धाराहय कंदवपुप्फगंपिव समुस्सियरोमकूवा, ते प्पि अणगारा अगमिस्सए दिट्ठिए, पिहमाणी२ सुचिरं निरक्खंति २ वदंति२ त्ता नमंसइ २त्ता, जेणेव अरहा अरिठनेमी तेणेव उवागम्छइ २ सा अरहं अरिनेमि तिक्खूत्तो आयाहीणं पायाहीणं करेइ२ त्ता वंदइ णमंसइवंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाण दुरुहइ२त्ता जेणेव वारवतिए णयरीए तेणेव उवागए, बारावतिणयरीए अणुपविसंति २त्ता जेणेव सएगिहे जेणेव बहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता धम्मित्ताओ जागपवराओ पच्चोरुहइ २ सा जेणेव सोवासपरते जेणेव सए सयाणजे तेणेव उवादूध भरागया, नेत्रों प्रफुल्लित विक्सायमान हुवे कंचुकी(चोली) तंग हुइ, वाह के बलिये (न्डीयों) भी तंग हुवे, मेघ की धारा से सिंचन किया कदम्ब वृक्ष के फूल के समान विकसित हुइ, रोमांकुर खडे हुवे, उन छही अनगार को अन्मिप (मेषोनमेष) दृष्टो से देखती हुइ २ बंदना नमस्कार कर जहां अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ थे तहां आइ, आकर अरिहंत अरिष्ठ नेमीनाथ को तीन वक्त घुटने जमीन को लगा हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त % फिरकर वंदना नमस्कार करके उसही धार्मिक स्थपर स्वार होकर जहां द्वारका नगरी है तहां आइ, द्वारका । में आकर जहाँ बाहिर की उपस्थानशाला तहां आइ. आकर उपस्थानशाला में धार्मिक स्थ से नीचे उतरी तृतीय वर्म का अष्टम अध्यायन 48.83 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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