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अर्थ
अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अकंपणा, विहियमावणेहारम् करयलसेपुड गिन्हइ २ ता तव अंतियं साहरित, वे अंत साहरित्ता ॥ २७ ॥ तं समयं चणं तुम्हेपि नवहं मासाणं सुकुमालं दारए पसवसि जेवियणं देवाप्पियाणं, तव पुत्ता तेविय तत्र अंतियातो करयल पुढेगिण्हइ २ ता सुलसाए गाहाबइणीए अंतिए साहरति तंचेवणं देवतिए ले तव पुत्ता, णो चेत्रणं सुलाए गाहाबइणी पुत्ता ! ॥ २८ ॥ तसेणं सा देवदेवी अरहओ अरिनेमिए अंतिए एमढं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा जाब हियया, अरहो अरिनेमि वदति णमंसंति वंदित्ता नमसित्ता जेणेव ते छ अणगारा तेणेव उवागच्छइ २ सा ते छप्पिय अणगारा वंदति णमसंति, आगयपण्हता, पफूलयलोयणा, (वक्त नवमहीने प्रतिपूर्ण हुवे तू सुकुमाल बच्चों का जन्म देती तब तेरे बच्चे को संहारनकर करसंपुट में ग्रहण कर सुलेसा के पास स्थापन करें || २७ || हे देवकी ! इसलिये निश्चय से वे छ अनगार तेरे पुत्र हैं परंतु सुलसा के पुत्र नहीं है ॥ २८ ॥ तब वह देवकी देवी अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ भगवान { के पास उक्त अर्थ श्रवण करके अवधार कर हृष्ट तुष्ट हुइ यावत् हृदय में विक्सायमान हुई अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ को वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार करके जहां वे छेही अनगार थे तहां आई, उन छेडी (अनगारको भी वंदना नमस्कार किया, उसवक्त देवकीका इन छेही साधुओं पर पुत्र स्नेह उमटनेसे स्तनों में
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प्रकाशक राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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