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११. अष्टमांग-अंतगड दशांग सूच4888
करेइ २ ता जाणु पायपडिया पणार्म करेइ २ ता ततोपच्छा आहारेतिवा निहातिवा वरनइव ॥ २२ ॥ तत्तेणंतीसे सुलसाएगाहावइणी भत्तिवहुमाणा सुस्सुसाए हरिणगमेसीदेवे आराहिएयाति होत्था ॥ २३ ॥ तसेणं से हरिणगमेसिदेवे सुलसाए गाहावईणीए अणुकंपणट्टयाए सुलसागाहावइणी तुम्हंचणं दोनिवि समामेव
सगब्भयाकरेइ ॥ २४ ॥ ततेणं तुब्भिदोन्नि समामेवं गम्भि गिण्ह २ चा, समामेव 3 गम्भं परिवहह, समामेव दारए पयायह ॥ २५ ॥ ततेणं सासुलसा गाहावइणी
वेणहायमावणं दारते. पयात्ति ॥२६॥ ततेणं से हरिणगमेसीदेवा सुलसाएगाहावइणीए कर के तब फिर आहार, निहार इत्यादिकार्य करतीथी ॥ २२ ॥ तब वह सुलसा गृहपतीनी भक्तिभाव से बहुतमान्य से सुश्रुषायुक्त हरिणगमेषी देव को आराधनेवाली हुई ॥ २३ ॥ तब वह हरिण गपेषी देव सुलसा गृहपतिनी की अनुकम्पा के लिये हे देवकी! द और सुलसा दोनों साथ ही गर्भ धारन करने लगी [ ऐसा जाना ) ॥ २४ ॥ तब तुम दोनों साथ ही गर्भ ग्रहण कीया, ग्रहण कर साथ ही गर्भ की प्रतिपा-3 लना करती हुई, साथ ही बालकों को जन्म देने लगी ॥ २५ ॥ उ- वक्त वह मुलसा मृह पत्नी, मृत्युक (मरे हुवे) बच्चे को जन्म देने लगी ॥ २६ ॥ तब हरिण गमेषी देव सुलसा गृहपतिनी की अनुकम्पा के लिये तेरे बालक को कर संपुट (दोनों हाथों के बीच) में ग्रहण कर तेरे पास स्थापन करे और उसही है ।
18438+ तृतीय वर्गका अष्टप अध्ययन
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